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12 Feb 2021 · 7 min read

घनाक्षरी के प्रकार (भेद) सउदाहरण

घनाक्षरी के प्रकार

मनहरण (मनहर) घनाक्षरी, जनहरण घनाक्षरी , जलहरण घनाक्षरी, कलाधर घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी , कृपाण घनाक्षरी , डमरू घनाक्षरी ,विजया घनाक्षरी , देव घनाक्षरी , सूर घनाक्षरी व कुछ अनुप्राश में घनाक्षरी (उदाहरण सहित)

घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे अधिक लोकप्रिय है । इस लोकप्रियता का प्रभाव यहाँ तक है कि बहुत से कवि मित्र भी मनहरण को ही घनाक्षरी का पर्याय समझ बैठते हैं । इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 7 वर्ण होते हैं प्रत्येक पद का अंत गुरू से होना अनिवार्य है किन्तु अंत में लघु-गुरू का प्रचलन अधिक है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।
शेष वर्णो के लिये लघु गुरु का कोई नियम नहीं है
इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान आवश्यक है
इसमें चार चरण और प्रत्येक चरण में 16, 15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं |
छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर
‘यति’ रहना आवश्यक है
जहाँ तक हो, सम वर्ण के शब्दों का प्रयोग करें तो पाठ मधुर होता है। यदि विषम वर्ण के शब्द आएँ तो , दो विषम एक साथ हो

रही बात इस विधा में तुकान्त की। पहले 8 अक्षर का चरण और दूसरे 8 अक्षर के चरण का तुकांत मिलाना आवश्यक है। तीसरे 8 अक्षर के चरण का भी यदि तुकांत, मिल जाए तो सोने पर सुहागा। अलग भी रख सकते है
इसी प्रकार 7 अक्षरों वाले चरणों के तुकान्त मिलाना आवश्यक है।
मनहरण घनाक्षरी छंद का शुद्ध रूप तो ८-८-८-७ ही है. अर्थात १६-१५,
कुछ शिल्पगत त्रुटियुक्त घनाक्षरी लिखते है. नियम तो नियम होते हैं. नियम-भंग महाकवि करे या नया कवि , दोष ही कहलाएगा.

कभी महाकवियों के या बहुत लोकप्रिय या बहुत अधिक संख्या में उदाहरण देकर गलत को सही नहीं कहा जा सकता है
महाकवि भी अपने शुरुवाती दौर की लिखी रचनाओं में त्रुटि मानते देखे गए है , पर उनके शुरुवाती दौर की रचनाएं , लोग उदाहरण देकर विवाद प्रलाप पर उतर आते है ,

काव्य सृजन में नियम न मानने पर कोई दंड निरुपित नहीं है, सो हर रचनाकार अपना निर्णय लेने में स्वतंत्र है.

उदाहरणार्थ मेरे स्वरचित –

#मनहरण घनाक्षरी

विनय हमारी नाथ, तेरे दर मेरा माथ ,
शीष पर तेरा हाथ , यही तो पुकार है |
देखकर तेरी छवि , शरमाता है रवि ,
सोचता है सदा कवि ,मूर्ति मनुहार है ||
तू चिर सनातन से ,देखता है गगन से ,
रखे अपनेपन से , तू जग उद्धार है |
अब कहता सुभाष नव चाहता प्रकाश ,
आपका बनूँगा खास, तभी उपचार है ||

#मनहरण घनाक्षरी

अब खून खोलता है, जूनून भी डोलता है,
राष्ट्र प्रेम बोलता है , हाथ नही बांधिए ||
लेना पड़े प्रतिकार , सुन लीजे सरकार ,
समय की दरकार -लाज देश राखिए ||
सैनिक का बलिदान , नहीं सहो अपमान
दुश्मन की छाती का -रक्त पान कीजिए ||
दुशमन है शैतान जन्म से ही बेईमान-
चोट देना अब ठान ,सबक ही दीजिए ||

©सुभाष ‌सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई •
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़‌ (म० प्र०)
=========

#जनहरण घनाक्षरी
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं ।
प्रत्येक पद का 31 वां वर्ण गुरू होगा , शेष सभी वर्ण लघु होते हैं ।
चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।

रघुपति कुल जय , कमल नयन जय ,
चरण शरण अब , सियपति सुनिए |
चमन बतन रख , अमन गगन लख ,
कथन मनन चख , बच मम गुनिए ||
निकलत ध्वनि मन , तपन अगन सब ,
सरस सदन सब , महकत रखिए |
परम सुजन मन , रवि कुलकर तन ,
जग मग पग रख , मम उर बसिए ||

©सुभाष सिंघई
========================

#जलहरण घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 31वां एवं 32वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये
अर्थात अंत में दो लघु होना चाहिये ।
चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।

हिमगिरि पर शंभु , बना रखा एक तंबू
अनुपम है आलय , गिरिराज हिमालय |
शीष जटा सिर गंगा , रहता मन है चंगा ,
त्रिपुंड जड़ा सुंदर , चंद्र बना भालोदय ||
हे हरिहर शंकर , पावन रज कंकर ,
तेरे दर्शन से , हो पापो का पूरा क्षय |
सबके कृपा निधान , करते जग कल्यान ,
शरणागत रहते , वह रहते‌ निर्भय ||

©सुभाष सिंघई
======================
कलाधर छंद घनाक्षरी~
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद 8,8,8,और 7 वर्ण होते हैं । प्रत्येक पद में क्रमश: गुरू-लघु 15 बार आता है और अंत में 1 गुरू होता है ।
इस प्रकार 31 वर्ण प्रति चरण। चारों चरण सम तुकांत

विषय- गुरुदेव

ज्ञान दान दे अपार , देख नेक नूर. संत ,
हाव-भाव सार प्यार, के अनंत नूर हैं |
बात सार की सुभाष , मानिए सुलेख कंत ,
चंद्र नेह के प्रकाश , आसमान सूर हैं ||
देखता सदा उदार , नेक रूप शीत-धूप ,
मेघ छाँव ज्ञान भान , मात तात पूर हैं |
ज्ञान के गुरू महेश , तीन लोक शान भूप,
फूल -सी सुगंध सींच , मानिए न दूर है ||

==========सुभाष सिंघई====
कलाधर घनाक्षरी
विषय -मित्र

यार भी लगें विचार, वान हाथ साथ आज,
ताल-मेल रेल-खेल , राग-बाग मोर है |
प्यार-तार मार-धाड़ देख-रेख यार नेक ,
प्रीति-मीत गीत-रीत , हार-जीत डोर है ||
आन-वान शान-गान , चंद्र-भान छंद-इंद्र ,
चाह-वाह राज-काज , ओज मौज भोर है |
हास भाष छाप थाप , देख-भाल हाल-चाल ,
खान-पान पार्थ-सार्थ सत्य मित्र शोर है ||

सृजन – सुभाष सिंघई
एम• ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
~~~~~~~~~~~~~

#रूपघनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । 32 वां वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये ।
चारो पद के अंत में समान तुक होता है

जनता लेकर नोट , अपना देती है वोट ,
सहती है फिर चोट, बड़े यहाँ मज़बूर |
सही न जिनका कर्म , चाहते उनसे धर्म ,
समझते नही मर्म , वह कैसे है हुजूर ||
उनका रहता गान , देश की बनते शान ,
हम निपट किसान , वह दिखे देश नूर |
बतन के वह माली, रहे घर उजयाली
हम सब रहें खाली , पर वह भरपूर ||

© सुभाष सिंघई
==============≠

#कृपाण घनाक्षरी –
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी चरणों में सानुप्रास होता है अर्थात समान उच्चारण समतुक होता है । चारो पद के अंत में समान तुक ,या दो दो चरण तुकांत |

बतन के देखो माली , कैसी यह रखबाली ,
खजाना करते खाली, फिर भी बजती लाली |
आदत खराब डाली , भाषण में देते गाली ,
लोग बजा देते ताली , जबकि झोली है खाली ||
लगे बात बेईमानी , घाटे‌ में रहे किसानी ,
नेता की भाषण वानी , जिससे मिलती हानी |
जन करते नादानी , बन जाते हम. दानी ,
खाकर. चोट. निशानी , पीते है कड़वा पानी ||

© सुभाष सिंघई
==================[
डमरू घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी 32 वर्ण अनिवार्य रूप से लघु होना चाहिये अर्थात सभी वर्ण लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।़

हिमगिर हरिहर , बम बम हर हर ,
नमन चरण जय , करत रहत मन , |
नगर सुघर घर , हरिहर हिमगिर ,
सकल सघन वन , शिव घर नग धन ||
भसम लिपट तन , नद जल जट धर ,
चहक चहल रह , गणिपति सुत गुन |
कहत रहत तब , अमन चमन सब ,
धवल कमल मन ,चरणन अरपन ||

© सुभाष सिंघई
====================
#विजया घनाक्षरी-
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी पदो के अंत में लघु गुरू( १२) या नगण (१११)मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है

गिरिराज हिमालय , है हिमगिरि आलय ,
माने शिव देवालय, बम बम ताल रहे |
तन मृग छाला , जटा जूट गंग माला ,
महादेव मृग छाला , चंद्र सदा भाल रहे ||
मै अब चरण खड़ा , भजता चरण पड़ा ,
लेकर विनय अड़ा , प्रभु का कमाल रहे |
नित प्रति दिन जपूँ , अब नमो नमो कहूँ
बंदन नमन करूँ ,चरणों की ढाल रहे ||

#विजया घनाक्षरी ~

धर सैनिक का वेश, रखकर आगे देश ,
मन अब छाए रोष, उनकी छाती चीर दो ||
गाते जो उनके गीत ,करते शत्रु से प्रीति,
मौका ए उनके मीत ,उनको अब पीर दो ||
धधकी दिल में आग ,भारत माता को दाग ,
उजड़े कई सुहाग , उन सबको धीर दो |
समय सुभाष आज , बचाए माता की लाज,
आयें बतन के काज , ऐसी अब नजीर दो ||

© सुभाष सिंघई
===============
देव घनाक्षरी
इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 9 के क्रम में 33 वर्ण होते हैं । सभी पदों के अंत में नगण मतलब तीन लघु होना चाहिये । चारो पद के अंत में समान तुक होता है ।

रहो सदा हिल मिल , नेक रखें हम दिल ,
सुखमय हर पल , भारत है सदा चमन |
जहाँ तहाँ हरियाली , प्रतिदिन हो दीवाली ,
बजे विजय की ताली ,भारत में रहे अमन ||
सहज सजग हम , नहीं कहीं से है कम ,
हर. पल हरदम , भारत. है सुनो बतन |
हम सत्यता निहारें , सुंदर बात विचारें ,
लगते है जयकारे , भारत बना है चमन ||

=========सुभाष सिंघई====

#सूर घनाक्षरी

(8,8,8,6 वर्ण चरणान्त में लघु या गुरु दोनों मान्य)

हिमगिर हरिहर रहते गौरीशंकर ,
दिखते हर कंकर , बाधा हरते है |
जग ताप निकंदन , गणपति है नंदन ,
प्रथम जग वंदन , सदा रहते है ||
सिर पर शोभे गंगा , दर्शन से मन चंगा ,
भसम भभूति रंगा , सब कहते है |
सुभाष शरण तेरी , भव बाधा हर मेरी ,
लगे न जग में फेरी ,मंशा करते है ||

=====सुभाष सिंघई ========

#विजया अनुप्राश घनाक्षरी-

इस घनाक्षरी के प्रत्येक पद में 8,8,8 और 8 के क्रम में 32 वर्ण होते हैं । सभी पदो के अंत में लघु गुरू( १२) या नगण (१११) होते है । चारो पद के अंत में समान तुक होता है

सूर्य से सुर सुजान ,माथ में मयंक मान ,
अवनि अम्बर आन , हाय- हाय हरि हरो |
हिमगिरि हिमालय , अद्भुत आज आलय ,
तेज तप तेजालय, कीर्तिदेव कृपा करो ||
जटा जूट जटे जड़े , भस्म भूत भंग भिड़े ,
गंगोत्री गहरी गड़े ,भाल भूभि भाग्य भरों |
नंदी नाथ निहारते , सुभाष-से सुधारते ,
पाप पुण्य पुकारते , रब रहमत रहों ||

===सुभाष ‌सिंघई ======

#जलहरण अनुप्राश घनाक्षरी
८-८-८-८ वर्ण , (३२ वर्ण ) चार चरण , चरणांत दो लघु अनिवार्य

सूर्य-सी सुजान शान ,माथ में मयंक मान ,
अवनि अम्बर आन , हेर हरि हरहर |
हिमगिरि हिमालय , अद्भुत आज आलय ,
तेज तप तेजालय, कीर्ति कृपा करो कर ||
जटा जूट जटे जड़े , भस्म भूत भंग भिड़े ,
गंगोत्री गहरी गड़े , डमरू डम डगर |
नंदी नाथ निहारते , सुभाष-से सुधारते ,
पुण्य पाप पुकारते , रहमत रहवर ||

======सुभाष सिंघई =======

©सुभाष ‌सिंघई
एम•ए• {हिंदी साहित़्य , दर्शन शास्त्र)
(पूर्व) भाषा अनुदेशक , आई•टी •आई • )टीकमगढ़ म०प्र०
निवास -जतारा , जिला टीकमगढ़‌ (म० प्र०)

आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से घनाक्षरी प्रकार को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर

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