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26 Nov 2018 · 1 min read

गज़ल

बन्द तालों से मेरे दिल को छुड़ाकर ले गया
चन्द लम्हो में मुझे , मुझ से चुराकर ले गया

जिस्ममें दिल बनके मेरे अब धड़कने था लगा
चैन दिल का , नींद आँखों से उड़ाकर ले गया

बेरुखी थी या मुहब्बत ये समझ पाये न हम
आँसुओ को आँख में अपनी बसाकर ले गया

कौन आता है किसी के गम मिटाने को भला
सारे गम सीने पे अपने वो सजाकर ले गया

चढ़ गया है वो नशा उन के मुहब्बत का हमे
मयकदा आँखों को मेरी वो दिखाकर ले गया

दर्दअब आँखों से मेरी अश्क बनकर बह रहा
एक कतरा खूँन का मुझ पर गिराकर ले गया
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
26/8/2017

2 Likes · 5 Comments · 280 Views
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