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22 Jun 2018 · 1 min read

गज़ल

अनजानी राहों में अनजाने शहरों में ,
मेरे हमदम घूरती निगाहें बहुत हैं।
किस डगर हम चले ऐ मेरे हमनशीं ,
हर कदम यहाँ निशाने बहुत हैं।
चाहे रहे हम कितने भी तन्हा,
कानो से टकराती आवाजें बहुत हैं।
सोचना भी न चाहे हम तुमको कभी ,
याद आने के लिए तेरी यादें बहुत हैं।
दिल को ना छेड़ो तुम मेरे कभी,
दफ़न इसमें साजें बहुत हैं।
भूले कैसे हम जख्म ए दिल,
कुरेदने को क़ातिल ए अंदाजे बहुत हैं।
जिए भी तो कैसे ये अपनी जिंदगी,
जीने के लिए भी तो रिवाज़े बहुत हैं………

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