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19 Apr 2017 · 1 min read

गज़ल :– मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ॥

गज़ल :–मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ॥

प्यार वो हम से जताने आ गए ।
आज फ़िर से आजमाने आ गए ।

बेडियां पैरों में मेरे क्या बँधी ,
फैसला कातिल सुनाने आ गए ।

जब हुआ मुश्किल सम्हलना भी मिरा
मैकदों में लड़खड़ाने आ गए ।

इसकदर इफ्फत से वो समझे हमें ,
साँस क्या टूटी , जलाने आ गए ।

आब आँखो से मिरे क्या गिर गया ,
आग बस्ती की बुझाने आ गए ।

अनुज तिवारी “इंदवार”

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