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28 Mar 2017 · 1 min read

गज़ल :– अब हमारे दरमियां भी फासला कुछ भी नहीँ ।।

तरही गज़ल :–
2122–2122–2122–212

आसरा कुछ भी नहीँ है वासता कुछ भी नहीँ ।
ज़िंदगी तो चंद लम्हों के सिवा कुछ भी नहीँ ।

बिन तुम्हारे ये चमन है आज भी उजड़ा हुआ ,
अब हमारी खैरियत का सिलसिला कुछ भी नहीँ ।

देखता जो हर पहर आगोश में मुझको लिए ,
हैं सितारे लाख , मेरे चाँद सा कुछ भी नहीँ ।

मेरी हर इक आह उल्फ़त को बयां करती हैं ये ,
इन निगाहों का तेरे बिन आसरा कुछ भी नहीँ ।

तुम सदायें याद रखना हमवफा हरगिज़ वहाँ ,
अब हमारे दरमियां भी फासला कुछ भी नहीँ ।

आग थी ये तो विरह की वस धुआँ उठता रहा ,
लोग कहते हैं वहाँ पर तो जला कुछ भी नहीँ ।

हम उसूलों पे चले, हैं राह-उल्फ़त मोड़ पे ,
रौँदने के इक सिवा अब रासता कुछ भी नहीँ ।

अनुज तिवारी “इंदवार”
उमरिया
मध्य-प्रदेश

स्वरचित

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