**ग्राम्य दर्शन खो गया मन **
भीड़भाड़ और भागम भाग से
मन मेरा अकुलाया ।
नगरो महानगरों से निकल
मै
गांव चला आया।
हवा शुद्ध थी आज मिली
दिल की खिल गई कली कली ।
स्वागत सत्कार में मेरे
दौड़ आई सारी गली गली।
अपनापन उनकी आंखो का
मुझको बहुत ही भाया।
मै
गांव चला आया।
निश्छल प्रेम था उन आंखो में
जो अब तक पा न सका।
भाव सभी का ऐसा देखा
जैसे हो सब मेरे सखा।
रम गया मन ठहर गया तन
मैंने खुद को भी बसाया ।।
मै
गांव चला आया ।
—– शेष बाद में !
राजेश व्यास अनुनय