गौरैया
बड़े दिनों के बाद आज
गौरैया मेरे घर आई
बहते हुए नाबदान से कुछ
दाने चुनकर खाई
थोडा सा जलपान किया
तृप्त हो ली अंगड़ाई
ऐसा लगा छप्पन भोग को
गौरैया खा मुस्काई
बोली मेरी बात सुनो तुम
अन्नदेव को मत फेकों
जितना अनाज फेकते हो
बस उतना मुझको दे दो
खेतों में तुम जाल बिछाते
कभी जहर छिड़कते हो
हम पंछी परिवार से तुम
इतना भी क्या जलते हो
हम फसलों को सदा किट
पतंगों से रक्षा करते
खेतों में मलमूत्र त्याग कर
हरी खाद से है भरते
अगर नहीं हम होते सोचो
किट पतंगे क्या करते
किट पतंगे अगर ना होते
परांगण कैसे होते
जितना हम मेहनत करते
बस उतना हक़ माँग रहे
सारी धरती हड़प लिए हो
जंगल को भी हड़प रहे
मेरे हक़ का अन्न मार कर
नाबदान में फेक रहे
जो ईश्वर संसार रचाये
वो सबकुछ हैं देख रहे
धरती नदी पहाड़ बनाये
जंगल और मैदान कही
तुमको मुझको वही बनाये
भोजन सबको दिए वही
फिर भी तुम कहते हो मेरा
सब छीन ले जाते हो
तुच्छ स्वाद के लिए हमारा
बेटा काट कर खाते हो
बड़ी-बड़ी बातें करते हो
सुविचार को रचते हो
दया,अहिंसा,न्याय के झूठे
छद्म अलाप जपते हो
बड़े-बड़े हो धर्म बनाते
ईश्वर को ठगते हो
कुर्बानी बलि झुठ प्रथा रच
काट हमें खाते हो
अगर कही सच जन्नत होगी
नहीं पहुँच तुम पाओगें
हम निस्वार्थ अहिंसक पंछी
को जन्नत में पाओगे
मगर जहन्नुम सचमुच का
बना दिए हो धरती को
हमको मार मार कर खाते
खुद मरने से डरते हो
कही धर्म के नाम मारते
कही नीच जिहाद पर
कही सरहद के नाम मारते
कही आतंकवाद कर
योगी योगेन्द्र