Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Sep 2021 · 11 min read

गोवा की सैर (कहानी)

कहानी
——————
गोवा की सैर
♥️☘️♥️
” मैंने पहली बार गोवा में आकर बियर पी है । मुझे बहुत डर लग रहा था । सोचती थी ,कहीं नशा न हो जाए !”
” बियर में नशा नहीं होता । बस तुम्हें थोड़ी मस्ती आई होगी । ..और फिर फ्रिज में वह बेचारी दो बोतलें और करतीं भी क्या ? तुमने उन्हें पी लिया और वह खुश हो गई होंगी ।”
“अरे मुझे तो बहुत डर लग रहा था। सचमुच ! पता नहीं बियर पीकर क्या हो जाए ?”
“सबको ऐसा ही लगता है ।”
यह उन दो लड़कियों की आपस में बातचीत थी जो रिसॉर्ट के रेस्टोरेंट में हमारी मेज के बिल्कुल पास में बैठी हुई नाश्ता कर रही थीं।

अरे हाँ ! मैं अपना परिचय तो आपको दे दूँ । अभी चार महीने पहले शासकीय सेवा से निवृत्त हुआ हूँ अर्थात अब रिटायर हूँ। उम्र साठ साल हो चुकी है । शादी के बाद हम पहली बार किसी बड़ी जगह पर घूमने आए हैं । अब यह मत पूछिए कि कौन सी शासकीय सेवा से रिटायर हुए ? मेरा कोई विशेष उल्लेखनीय शासकीय सेवा का पद नहीं था । इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा लिखना मुनासिब नहीं समझता हूँ। जो पैसे जुड़े थे ,उनसे सोचा कि गोवा घूम आएँ। पत्नी के साथ गोवा घूमने का प्लान बनाया और निकल पड़े ।
दोनों लड़कियों की बातचीत को हम लोग इस प्रकार का अभिनय कर सुन रहे थे कि मानो हमने कुछ सुना ही नहीं हो ताकि उनके अनुभव पता चलते रहें । यह दोनों लड़कियाँ रिसॉर्ट की शोभा थीं। दोनों खूबसूरत थीं। उम्र पच्चीस साल के करीब रही होगी । आपस में कोई रिश्तेदार या बहनें तो नहीं लगतीं। शायद किसी कंपनी में एक साथ काम करती होंगी और घूमने – फिरने के लिहाज से गोवा चली आई होंगी । मैं और पत्नी नाश्ता चुपचाप करते रहे । कनखियों से उन दोनों लड़कियों की ओर मैं नजर उठा कर देख लेता था । कुछ देर तक वह चुप रहीं और उसके बाद अपना नाश्ता निपटा कर चली गईं।
रेस्टोरेंट के पास ही रिसोर्ट का स्विमिंग पूल है । यहाँ हर समय सुबह से शाम तक नवविवाहित जोड़े पानी में तैरते रहते हैं । इस समय भी मेरे सामने तीन-चार जोड़े पानी के भीतर हैं । दो-तीन जोड़े आराम की मुद्रा में बैंचों पर लेटे हुए धूप सेक रहे हैं । दो-तीन जोड़े पानी में पैर लटकाए हुए हैं। सब दुनिया से बेखबर ,अपने में सिमटे हुए । मैंने काफी देर तक जब उनकी तरफ देखना चालू रखा तो पत्नी ने टोक दिया “अब देखते ही रहोगे या नाश्ता खत्म करके कमरे पर भी चलना है?”
” हाँ हाँ.. क्यों नहीं ..बुरा मत मानो । इनमें से कोई भी तुम्हारी तरह खूबसूरत नहीं है ।”मैंने पत्नी के सामने दाँव खेला,मगर वह समझ गई कि मैं हवा में गाँठ लगा रहा हूँ। बिना कोई प्रतिक्रिया चेहरे पर लाए हुए उसने कहा “ठीक है ! फटाफट नाश्ता निबटाओ। अब हमें चलना है । और हाँ ! कमरे में तुम भी बियर पीने मत बैठ जाना।”
” भगवान का नाम लो । मैंने कभी जिंदगी में तुम्हारी नशीली आँखों के सिवाय और कुछ पिया हो ,तो बता देना ।”
इस बार पत्नी पर मेरा फॉर्मूला काम कर गया । वह थोड़ी सी शर्माई और धीमे से मुस्कुरा कर मेरे प्रति आभार का प्रदर्शन कर दिया । मेरा काम बन गया । अब आज का दिन अच्छा बीतेगा ।

बीयर की बोतल रिसॉर्ट के कमरों में हर यात्री को फ्रिज में रखी हुई मिलती है। यहाँ भी फ्रिज में दो बोतलें थीं। प्रत्येक बोतल 330 मिली. की थी । पैंसठ रुपए प्रिंट थे । रेट – लिस्ट जो कमरे में रखी हुई थी ,उसके अनुसार इनकी कीमत एक सौ रुपए थी। “गोवा में आकर बियर नहीं पी तो गोवा नाराज हो जाएगा ” – -ऐसा मैंने और भी एक-दो को कहते हुए सुना था । मुझे तो गोवा नाराज होता हुआ कहीं नहीं दिखा।
थोड़ी ही देर में हम लोगों ने अपना नाश्ता भी निपटा दिया और कमरे की तरफ चल दिए । स्विमिंग पूल का नजारा अभी भी बहुत लुभावना था । न केवल साफ पानी ,हरे – भरे पेड़ ,गोवा की जाड़ों में भी खुशनुमा हवा बल्कि इन सबसे ऊपर वह मस्ती थी जो यहाँ ठहरने वाले पर्यटकों के चेहरे पर साफ नजर आती थी । जिस मस्त अंदाज में नवविवाहित जोड़े स्विमिंग पूल में तैर रहे थे, वह खुले माहौल को दर्शा रहा था।

कमरे में पहुंचकर हम लोग कुर्सी पर बैठकर आराम करने लगे । गोवा के लिए हमारी फ्लाइट दिल्ली से परसों शाम की थी और अब कल वापसी है । समय कितनी तेजी से निकल जाता है । गोवा के लिए फ्लाइट में दिल्ली से उड़ान भरते समय गोवा का असर दिखना शुरू हो गया था। इंटरनेशनल हवाई अड्डे पर स्वचालित सीढ़ियों से चढ़ते समय हमारे आगे एक नवविवाहित जोड़ा चल रहा था । लड़की ने जिसकी उम्र मुश्किल से बीस – बाईस साल रही होगी ,एक छोटी – सी नेकर पहन रखी थी । इतनी छोटी कि उससे ज्यादा छोटी पहनना संभव नहीं थी । छोटी सी नेकर में उसकी लंबी टाँगे और भी लंबी नजर आ रही थीं। कुछ – कुछ अजीब सा लग रहा था। दिल्ली का तापमान इतना ऊँचा नहीं था कि यहाँ इस प्रकार के कपड़े पहनना उचित होता । लेकिन गोवा जाने वाले हर यात्री के दिमाग में दिल्ली से ही गोवा सवार हो जाता है ।

गोवा का समुद्र तट कल हमने घूमा था। समुद्र की लहरों में स्नान करके सचमुच मजा आ गया था । खुद आकर भिगोती हैं और फिर खुद ही वापस चली जाती हैं । फिर नहाने के लिए हमें निमंत्रण देती हैं और ढेर- सा पानी लाकर हमारे ऊपर उड़ेल देती हैं। वाह री दुनिया ! सब कुदरत की माया है । जितनी देर तक चाहे ,इन समुद्र की लहरों में खेलते रहो । हमें भी दो-तीन घंटे कब गुजर गए, पता ही नहीं चला।
मोटरबोट पर भी बैठे और घूमने गए। मांडवी नदी के तट पर कैसीनो एक लाइन से न जाने कितने हैं ! सुसज्जित अवस्था में खड़े थे ।जब शाम ढल जाएगी, तब यहाँ की रंगीन रातें दर्शनीय हो जाती हैं। मोटरबोट से घूमते समय इन सब की छटा किनारे पर दिखाई दे रही थी ।
जो सबसे खास बात मैंने महसूस की ,वह यहाँ के मकानों के ऊपर पड़ी हुई खपरैल थी । खपरैल अर्थात मकान की पकी हुई मिट्टी की छत । यह एक प्रकार की उस मिट्टी से ढकी हुई होती है जिससे हम गमला ,घड़ा और कुल्हड़ आदि बनाते हैं । यह अर्ध – गोलाकार चीज होती है जो बराबर – बराबर रखकर छत पाट दी जाती है । छत ढलानदार होती है । खपरैल वाली इमारतें केवल ग्राउंड फ्लोर पर बनी होती हैं। अब जो बहुमंजिला इमारतें बन रही हैं, उसमें खपरैल का प्रश्न ही नहीं होता। लेकिन फिर भी उस डिजाइन को बनाए रखते हुए भवनों की सबसे ऊंची मंजिल को खपरैल जैसा आकार अनेक बार दिया गया है । सड़क पर टैक्सी से जाते समय इस प्रकार के अनेक भवन नजर आए । हम जिस रिसोर्ट में ठहरे थे ,वहाँ भी ग्राउंड फ्लोर की छत का कुछ हिस्सा खपरैल – टाइप सजाया गया था ।
एक पुराने मकान के पास टैक्सी से जाते समय दस-पाँच मिनट रुकने का अवसर मिला था । मैंने मकान मालिक से पूछा ”क्या यह आपका मकान है ? कितना पुराना है?”
वह बोले “एक सौ साल पुराना यह मकान है ।..और सौ साल पहले जिस प्रकार से बना था ,आज भी वैसा ही है । ”
मैंने कहा “इस प्राचीनता को तो मैं प्रत्यक्ष दर्शन से अनुभव कर रहा हूँ लेकिन अब गोवा में यह प्राचीनता समाप्ति की ओर अग्रसर है । आपको कैसा लगता है ?”
उनका कहना था “भवनों का डिजाइन महत्वपूर्ण नहीं है । सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि गोवा की हरियाली खत्म होती जा रही है । पेड़ कट रहे हैं और उनके स्थान पर पक्के भवन बनते जा रहे हैं । एक दिन गोवा अपना प्राकृतिक सौंदर्य खो देगा। तब हम तो नहीं होंगे लेकिन उस समय गोवा का क्या होगा ? -यह सोच कर कष्ट होता है।”
वह साधारण घर – परिवार था । मुझे उनकी बातों में सच्चाई नजर आई । पैसे वाले लोग अक्सर अपने पैसों के कारण बाहर से खुश नजर आते हैं ,लेकिन वह भीतर से दुखी भी बहुत होते हैं। इसके विपरीत साधारण लोग जिस हाल में हैं, उसी में खुश रहने की कला सीख चुके हैं।
एक स्थान पर सड़क से गुजरते समय हमें प्यास लगी और हमने नारियल पानी की दुकान देखी ,तो रुक गए । मैंने और पत्नी ने एक – एक नारियल लिया । दुकान – स्वामिनी बहुत खुशमिजाज थी । मुस्कुराती रही। उसका पति उस समय दुकान पर ही भोजन कर रहा था । संभवतः घर भी वहीं था । इसलिए गृहस्वामिनी ही दुकान संभाले हुए सारे काम कर रही थी। वह मुस्कुरा रही थी । उनकी मुस्कुराहट के सामने धनाढ्य लोग बहुत रंक नजर आए।
×××××××××××××××××××××××
कल हमारी गोवा से वापसी थी। आज आखिरी रात बची थी । मेरी राय थी कि हमें यहाँ कैसीनो भी जरूर देखना चाहिए। पत्नी सहमत नहीं थी । उसका कहना था “यह जुआ है । अगर लत लग गई तो क्या करोगे ?”
“ऐसे थोड़े ही लत लग जाती है । फिर हम कौन – सा रोज -रोज कैसिनो में आएंगे और पैसा खेलेंगे । आज पहला और आखिरी दिन है । गोवा का कैसीनो जरूर देखना चाहिए। पूरे भारत में गोवा के अलावा कहीं कैसिनो नहीं है । बस यह समझ लो कि एक प्रकार का यह भी दर्शनीय स्थल है ।”
अंततः पत्नी राजी हो गई और हम दोनों कैसिनो की तरफ चल पड़े । शाम हो चुकी थी ।अंधेरा घिर आया था । कैसीनो मांडवी नदी के तट पर एक लाइन से बहुत सारे खुले हुए थे । सब के प्रवेश-द्वार काफी लंबे चौड़े थे । तेज रोशनी की जगमगाहट दूर-दूर तक खिल रही थी । बड़ा दिलचस्प और चटकीला नजारा वहाँ का बन गया था।
एक कैसिनो हमें पसंद आया और हम उसमें चले गए । टिकट खरीदा । टिकट खरीदने के बाद काउंटर पर हमारा पहचान- पत्र देखकर चेहरे का मिलान हुआ । उसके बाद रिसेप्शन पर बैठी हुई महिला ने हमारी कलाई पर कागज की एक पट्टी चिपका दी। उस पर कैसिनो का नाम लिखा था और दिनांक अंकित थी। इसी पट्टी को दिखाकर अब हमारी एंट्री कैसिनो में होनी थी ।
कैसीनो बहुमंजिला जहाज पर स्थित था। एक मोटरबोट पर बैठकर सभी ग्राहक मुख्य कैसिनो के जहाज पर पहुंचे । …और हां ! एक नियम यह भी था कि कैसिनो में प्रवेश करने के लिए पूरी पैर ढकी हुई पैंट पहनना अनिवार्य है । सब इसी ड्रेस – कोड में उपस्थित थे। रास्ते में जब हमारी मोटरबोट मुख्य कैसीनो की तरफ जा रही थी ,तो चार- पांच लोगों के समूह बनते हुए हमने देखे ।यह लोग अपनी अपनी जेबों में पांच सौ के नोटों की गड्डियां भरे हुए थे और उनमें से कुछ रुपए आपस में इकट्ठा करके अपने एक साथी के पास जमा करा रहे थे । उद्देश्य तो समझ में नहीं आया लेकिन उनकी गतिविधि कुछ रोमांचक लगी ।
कैसीनो की एक अलग ही दुनिया थी । हर आदमी यहां पैसा जीतने के उत्साह से भरा हुआ था। लंबे चौड़े सपने लिए लोग यहां मुख्य हॉल में प्रवेश कर रहे थे । हर आदमी को उम्मीद थी कि वह आज लाखों रुपए जीतकर जाएगा । कैसीनो में नगद रुपए से खेल नहीं खेला जाता है। जितने रुपए से आपको खेल खेलना है ,उतने रुपए के प्लास्टिक के सिक्के आपको मिल जाएंगे।
मैंने पंद्रह सौ रुपए के सिक्के खरीदे थे । पत्नी का कहना था “सिक्के खरीद कर क्या करोगे ? हमें बस देखना है और देख कर चल देते हैं ।”
मैंने कहा ” भाग्यवान ! जब कैसीनो में खेल ही नहीं खेला तो फिर कैसीनो देखना कहाँ हुआ ? यह तो अधूरापन रह जाएगा ?”
फिर वह मानी और हम प्लास्टिक के सिक्के लेकर कैसीनो में प्रविष्ट हुए। एक दर्जन से ज्यादा मेजों पर खेल चल रहा था। मशीन घूमती थी और गोल घेरे में एक गेंद उस मशीन के ऊपर चक्कर लगाने शुरु कर देती थी। हमने सौ रुपए का सिक्का अपने द्वारा जो नंबर हमें पसंद आया ,उस पर रख दिया । मशीन घूमी… उसके ऊपर गेंद घूमती रही …और फिर जब मशीन रुकी तो गेंद जिस नंबर पर रुकी ,वह हमारा नंबर नहीं था। खेल खिलाने वाली लड़की ने हमारा प्लास्टिक का सिक्का उठा कर अपनी मेज की दराज में रख लिया । हमने पूछा “अब क्या होगा ?”
वहाँ पर मौजूद खेल खिलाने वाली लड़की ने कहा ” खेल पूरा हो गया । अब दूसरा खेल खेलने के लिए सिक्का रखिए।”
हम एक टेबल पर एक सौ रुपए से ज्यादा हारने के इच्छुक नहीं थे । इसलिए दूसरी टेबल की तलाश की । वहाँ भी जो नंबर पसंद आया ,उस पर सिक्का रखा.. मशीन घूमी… मशीन के ऊपर गेंद ने चक्कर लगाया …मशीन रुकी …गेंद एक खास नंबर पर आकर ठहर गई । वह नंबर हमारे नंबर से मेल नहीं खा रहा था । इस बार हमने किसी से कुछ नहीं पूछा । हम समझ गए कि यह एक सौ रुपए हम दूसरी बार भी हार गए । इसी तरह एक के बाद एक मेज पर चलते हुए हम रुपए हारते चले गए।
एक हजार रुपए के सिक्के हमारे पास बचे थे । एक मेज पर हमने संचालक से जाकर कहा ” एक सौ रुपए का खेल खेलना है ।”
उसने उंगली से मेज पर टँगे बोर्ड की नियमावली की तरफ इशारा करके हमें बताया ” यहाँ न्यूनतम एक हजार रुपए से खेल खेला जाता है ।”
हमने एक हजार रुपए का दाँव इस बार लगाना उचित समझा । पत्नी से कहा “तुम बैठकर नंबर लगा लो । जो नंबर पसंद आए, उस पर सिक्के रख दो । हम तो हार ही चुके हैं ,तुम भी भाग्य आजमा लो ।”
पत्नी को भी अब तक यह पता चल चुका था कि इस खेल में हारना ज्यादा होता है और जीतना न के बराबर । उसने कहा ” खेल कर क्या करना है ? चलो ,बाहर निकल लेते हैं ।”
मैंने कहा “अब जब रुपए के बदले में सिक्के ले चुके हैं ,तब बाहर निकलना न तो संभव है और न ही उचित है। सिक्कों का कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा । फेंकेंगे थोड़े ही । खेल खेलना ही उचित है ।”
एक हजार रुपए से पत्नी ने जो नंबर दिमाग में आया ,वहाँ पर सिक्के रख दिए। हमें हारने की उम्मीद थी। मगर इस बार टेबल पर बैठी लड़की ने कहा “आप दो हजार सात सौ पचास रुपए जीत गए हैं ।”
हमें बहुत खुशी हुई । चलो ,कुछ तो जीते। हमने कहा “हमें रुपए दे दीजिए ।”
वह बोली “आप अगर और खेलें तो आपका स्वागत है ।आप और भी ज्यादा जीत सकते हैं ।”
मैंने कहा “हम खेलना नहीं चाहते । हम नगद रुपए लेना चाहते हैं ।”
अब उसने हमसे दूसरी बार खेलने के लिए आग्रह नहीं किया । एक फार्म उठाया। उस फार्म पर कुछ भरा और दो हजार सात सौ पचास रुपए की धनराशि अंकित की । हमसे कुछ नहीं पूछा। न नाम ,न पता ,न टेलीफोन नंबर । दो मिनट में कहीं से लाकर हमारे हाथ में रुपए रख दिए। हमने गिने। पाँच सौ के पाँच नोट थे । दो नोट सौ-सौ के थे । दो नोट बीस-बीस के तथा एक दस रुपए का था । हमें जीते हुए दो हजार सात सौ पचास रुपए मिल गए थे । अब हम कैसीनो के खेल – कक्ष को आखिरी बार निहार कर बाहर वापस आ गए ।
लौटते समय जब हम मोटरबोट से सड़क की तरफ प्रस्थान कर रहे थे तथा नदी पार करने में जो समय लग रहा था ,उसे व्यतीत कर रहे थे, तब हमने देखा कि यात्रियों के चेहरे पर थकान थी । उत्साह गायब हो चुका था । हर आदमी मायूस नजर आ रहा था। कहने की आवश्यकता नहीं कि सब लोग हार कर कैसीनो से लौट रहे थे । जीता तो सिर्फ कैसीनो था।
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

Language: Hindi
494 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
The stars are waiting for this adorable day.
The stars are waiting for this adorable day.
Sakshi Tripathi
कहमुकरी
कहमुकरी
डॉ.सीमा अग्रवाल
■ लघुकथा / सौदेबाज़ी
■ लघुकथा / सौदेबाज़ी
*Author प्रणय प्रभात*
Perceive Exams as a festival
Perceive Exams as a festival
Tushar Jagawat
नेह निमंत्रण नयनन से, लगी मिलन की आस
नेह निमंत्रण नयनन से, लगी मिलन की आस
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
मान बुजुर्गों की भी बातें
मान बुजुर्गों की भी बातें
Chunnu Lal Gupta
नहीं आया कोई काम मेरे
नहीं आया कोई काम मेरे
gurudeenverma198
खाना खाया या नहीं ये सवाल नहीं पूछता,
खाना खाया या नहीं ये सवाल नहीं पूछता,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
देश के दुश्मन कहीं भी, साफ़ खुलते ही नहीं हैं
देश के दुश्मन कहीं भी, साफ़ खुलते ही नहीं हैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
MEENU
बट विपट पीपल की छांव ??
बट विपट पीपल की छांव ??
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
ले बुद्धों से ज्ञान
ले बुद्धों से ज्ञान
Shekhar Chandra Mitra
अब किसी की याद नहीं आती
अब किसी की याद नहीं आती
Harminder Kaur
तुम मत खुरेचना प्यार में ,पत्थरों और वृक्षों के सीने
तुम मत खुरेचना प्यार में ,पत्थरों और वृक्षों के सीने
श्याम सिंह बिष्ट
वो दिन भी क्या दिन थे
वो दिन भी क्या दिन थे
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
अधिकार जताना
अधिकार जताना
Dr fauzia Naseem shad
मैं आग नही फिर भी चिंगारी का आगाज हूं,
मैं आग नही फिर भी चिंगारी का आगाज हूं,
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
Every moment has its own saga
Every moment has its own saga
कुमार
जय प्रकाश
जय प्रकाश
Jay Dewangan
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
महसूस किए जाते हैं एहसास जताए नहीं जाते.
शेखर सिंह
*यहॉं संसार के सब दृश्य, पल-प्रतिपल बदलते हैं ( हिंदी गजल/गी
*यहॉं संसार के सब दृश्य, पल-प्रतिपल बदलते हैं ( हिंदी गजल/गी
Ravi Prakash
" तुम से नज़र मिलीं "
Aarti sirsat
नारी शक्ति.....एक सच
नारी शक्ति.....एक सच
Neeraj Agarwal
दिल की बात
दिल की बात
Bodhisatva kastooriya
नमन!
नमन!
Shriyansh Gupta
"मत पूछो"
Dr. Kishan tandon kranti
3182.*पूर्णिका*
3182.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
आज़ाद हूं मैं
आज़ाद हूं मैं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
दूजी खातून का
दूजी खातून का
Satish Srijan
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
Loading...