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18 Jul 2017 · 1 min read

गुलाबों की तरह खिलना कहाँ आसान होता है

गुलाबों की तरह खिलना कहाँ आसान होता है
गले काँटों से मिल हँसना कहाँ आसान होता है
मिटा देते हैं ये खुद को लुटाने के लिए खुश्बू
ख़ुशी यूँ बाँट कर मिटना कहाँ आसान होता है

लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल

Language: Hindi
764 Views
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