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29 Jul 2018 · 2 min read

गुरु पर्व

शीर्षक – गुरु पर्व
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गुरुजी के आश्रम में काफी चहल पहल थी, भक्तों का तांता लगा हुआ था l जयकारे धरती अंबर में गुंजायमान हो रहे थे l भीड़ देखकर समझा जा सकता था कि कोई पर्व या महोत्सव है l ऊंचे मंच पर एक सिंहासन पर गुरु जी विराजमान थे l आश्रम में गुरु जी के दर्शन के लिए पंक्तिबद्ध लोगों के बीच मैं भी अपनी पत्नी के साथ शामिल अपनी बारी का इंतजार कर रहा था l
गणवेश पहने कुछ लोग भीड़ को नियंत्रित करने में लगे हुए थे l एक ओर भंडारा चल रहा था वहाँ लोग प्रसाद ग्रहण कर रहे थे l

कतारें रेंगती हुई चल रहीं थीं। एक एक कर सभी गुरुजी के दर्शन कर प्रसाद ग्रहण कर रहे थे। मैने भी दर्शन किए ओर प्रसाद लेकर एक उचित स्थान देखकर बेठ गया l
कुछ समय बाद गुरु दर्शन करने का सिलसिला थम गया तब गुरु जी प्रवचन करने लगे – … ‘भक्तो जीवन नस्वर है, आत्मा अजर अमर हे, पाप का सबसे बड़ा कारण यह धन है, माया है, तुम सभी इस माया के वशीभूत हो.. इस माया का त्याग करके तुम सभी परमात्मा में लीन हो जाओ… स्वर्ग के द्वार तुम्हारे लिए खुल जाएंगे, गरीबों की सेवा करो, वही नारायण हे उसकी सेवा ही सच्ची पूजा है … . ….. I’
और न जाने क्या-क्या गुरु जी कहते रहे, सभी तन्मयता से सुनते रहे …. l
प्रवचन समाप्त हुआ तो सभी अपने-अपने घरो की ओर लौटने लगे।
आश्रम के बाहर मुख्य द्वार पर भारी संख्या में भीख़रियों की भीड़ जमा थी। गुरु जी के सेवक उन्हे खदेड़ने मे लगे हुए थे… चीख पुकार मची हुई थी..

मेरा मन ग्लानि से भर गया ….. क्या यही दरिद्र नारायण की पूजा हे….. माया त्यागने की बात करने वाले आश्रम-अधिष्ठाता के प्रवचन व आचरण का यह अंतर त्याग का एक थोथा नारा मात्र है , इसके अतिरिक्त और कुछ नही ….

राघव दुबे
इटावा
8439401034

Language: Hindi
1 Like · 466 Views
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