गुरुवर कहकर टांग खींचते
छंद-आल्ह/वीर
(मात्रिक छंद )
मात्रा भार-३१(१६,१५)
अंत -गाल २१
रस-व्यंग/हास्य
गुरुवर कहकर टांग खींचते , हमने देखें हैं इंसान।
नेकी कर कुएं में डाल अब,मत नहिं उसको अपना मान।
आगे पीछे करें बुराई,सम्मुख करते शिष्टाचार।
पीछे भोंक रहे हैं भाला,करते आगे हैं आभार।
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दुनिया में अब हवा बह रही,उल्टी गिनती की है चाल।
दुनिया दारी जाय भाड़ में,केवल मिल जाये अब माल।
प्यार मुहब्बत झूठे हैं सब, सबमें दिखता है व्यापार।
भाव दिखावट वाले हैं अब,दूषित दिखते हैं आचार।।
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मीठी वाणी सबको भाती,ठोस बरफ को दे पिघलाय।
मक्खन का रगड़ा देते हैं,वाणी फिसल- फिसल अब जाय।
उस जन को सच्चा मत मानो,जो झूठीं कसमें खा जाय।
मानो या नहिं मानो अब तुम,कहते सत्य अटल कविराय।।
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?अटल मुरादाबादी ?