गुरुदेव दरवेश भारती नहीं रहे
गुरुदेव दरवेश भारती जी का जन्म: 23 अक्तूबर, 1937 ई. को झंग (अब पाकिस्तान) में हुआ था। कल दिनांक, 3 मई 2021 ई. को उनका निधन हो गया। सन 1947 ई. के विभाजन के दौरान इनका परिवार भारत आ गया था। आपका मूल नाम ‘हरिवंश अनेजा’ था। आप उपनाम “दरवेश भारती” के नाम से साहित्य की दुनिया में विख्यात हुए। उनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ रहीं:—’रौशनी का सफ़र’ व ‘अहसास की लौ’ (दोनों ग़ज़ल संग्रह:) तथा “इंद्रधनुष अनुभूतियों के” (कविता संग्रह) जो बेहद लोकप्रिय रही।
“ग़ज़ल के बहाने” और “ग़ज़ल परामर्श” पत्रिकाओं के सम्पादक के तौर पर उन्होंने लम्बी पारी खेली। कई बार मुझे काव्य गोष्ठियों और मुशायरों में उनके साथ ग़ज़ल कहने का अवसर मिला था, विशेषकर फ़रीदाबाद में। सन् 2008 ई. से 2021 ई. तक हिन्दी ग़ज़लों की उनकी पत्रिका पहले ‘गजल के बहाने’ तथा बाद में ‘ग़ज़ल परामर्श’ के नाम से बहुत लोकप्रिय हुई थी। ये पत्रिकाएँ ई-पुस्तक कविताकोश में सुरक्षित रखी गई हैं, जो आज भी अनेकों पाठकों द्वारा पढ़ी जा रही हैं और नई पीढ़ी के ग़ज़लकारों को ग़ज़ल कहन के नए-नए मायने समझा रही हैं।
दरवेश भारती जी के कुछ चुनिन्दा अश’आर
फ़ना क्या है समझना हो जो ‘दरवेश’
उठो, और दाव पर खुद को लगाओ
जितना भुलाना चाहें भुलाया न जायेगा
दिल से किसी की याद का साया न जायेगा
कोई तो मुतअसिर भी कर पाये
जल्वे क्या, क्या दिखाओगे कब तक
बादे-सबा ने सहने-चमन पर किया करम
शबनम का तोहफ़ा पाते ही गुंचे चटक उठे
बनकर मिटना, मिटकर बनना, युग-युग से है ये जारी
मर्म यही तो समझाते हैं, ये दीवारों के साये
जब इस जहां को ठीक-से देखा तो ये लगा
चेहरों की भीड़ का यों ही हिस्सा बने रहे
जो रेंग-रेंग के मक़सद की सिम्त बढ़ती हो
उसी को मुल्क की इक ख़ास योजना कहिये
प्रेम खुद-सा करे न जो सबसे
फिर वो ‘दरवेश’-सा नहीं होता
दरवेश भारती जी के कुछ चुनिन्दा दोहे
कौन किसी का है सखा, कौन किसी का मीत
अर्थ-तन्त्र में अर्थ से, देखी सबकी प्रीत
मिले उन्हें अक्षय विजय, जो हों नम्र, विनीत
दम्भी दुर्योधन-सरिस, कभी न पाते जीत
कौन किसी का शत्रु है, कौन किसी का मित्र
हुए उसी के संग सब, जिसका साधु चरित्र
वर्षों जीवन जी लिया, आज हुआ महसूस
काम न कोई बन सके, बिन परिचय, बिन घूस
दिन-प्रतिदिन है बन रही, राजनीति व्यवसाय
सेवा-भाव विलुप्त है, लक्ष्य मात्र है आय
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