गुजरे दिन वो बचपन के
गुजरे दिन वो,बचपन के
जब खेलते संग,हमजोली के
मिट्टी के अनोखे खेल-खिलौने
खेल-खेल में धमा-चौकड़ी
छोटी बातों पर क्रोधित होना
और यारों के संग मारामारी
शायद दिन वो न आये,अब
माँ की आँचल के नींद सुहाने
गुजरे दिन वो,बचपन के
जब खेलते संग,हमजोली के।
गुड्डा-गुड्डी के खेल खेलते
और मिट्टी के हम घर बनाते
घर-आँगन आलोकित था
नन्हें पांव के कदमतालों से
भाई-बहन को खूब चिढ़ाना
चोर-चोरनी कहकर,बातों में
गुजरे दिन वो,बचपन के
जब खेलते संग,हमजोली के।
निशाकाल मे डूब गया,वो
खेलता बचपन,आँगन का
माँ की लोरियाँ याद आये और
दादी की परियों की कहानी
गुल्ली-डण्डा खेल में यारियां
थी,साथ खेलते हमजोली के
गुजरे दिन वो,बचपन के
जब खेलते संग,हमजोली के।
है दिवास्वप्न की भाँति भी,अब
सुनना राजा-रानी की कहानियां
नाना-नानी के गोद में खेलना
बातों-बातों में पापा से रूठना
काश,वो दिन फिर आ जाए
करना आंखमिचोली, हमजोली से
गुजरे दिन वो,बचपन के
जब खेलते संग,हमजोली के।
-सुनील कुमार