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9 Oct 2018 · 1 min read

गीत

विषय-बदरा
विधा-गीत

बिजली कौंधे #बदरा छाए
बारिश की रुत अगन लगाए
बैरी नैना झमझम बरसे
मेरा भीगा बदन जलाए।

#बैरी बदरा गरजे-बरसे
बागों में हरियाली छाई
मोर, पपीहा, कोयल झूमें
पावस रुत मतवाली आई।

राह तकूँ मैं दीप जलाकर-
पिया मिलन की लगन लगाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।।

लंबी पेंग गगन को चूमे
गोरी का गजरा लहराए
धानी चूनर ,बहका कजरा
#काले-काले बदरा छाए।

बूँदों ने छेड़ी है सरगम-
जगमग जुगनू वन इठलाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।

पायल, बिंदी, चूड़ी, कुमकुम
जीवन का श्रृंगार सजन से
सखी-सहेली छेड़ें मुझको
हँसी-ठिठोली करें पवन से।

काले कंबल बनकर छाए
रिमझिम बारिश चमन खिलाए।
मेरा भीगा बदन जलाए।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
Tag: लेख
239 Views
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