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8 Oct 2018 · 1 min read

गीत

“अविरल नीर बरसता है”
********************

समझ न पाऊँ प्रेम विधा मैं, उर में नेह उपजता है।
रोम-रोम मदमाता मेरा, अविरल नीर छलकता है।।

निश्छल प्रेम सहज जीवन में,
अनुरागी मन बरस रहा।
भोगी सावन मन अकुलाता,
प्यासा चातक तरस रहा।

मंद पवन का झोंका आकर, दे संदेश विहँसता है।

मौसम की उन्मुक्त बहारें,
सुरभित उपवन लहरातीं।
धूम मचा घनघोर घटाएँ,
हर घर आँगन महकातीं।

बरसा दो सुख की बदली तुम, याचक पथिक तरसता है।

चंचल चितवन धर ललनाएँ,
मोहकता पनपाती हैं।
सागर तट टकराती लहरें,
गीत विरह के गाती हैं।

मधुर मिलन की आस सँजोए, खग दृग राह निरखता है।
रोम-रोम मदमाता मेरा, अविरल नीर छलकता है।।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
Tag: गीत
150 Views
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