गीत
बस इतना सा खुद को गुनहगार कर लेता।
कि आदमी आदमी से प्यार कर लेता।
न करता धर्म जाति भेद
न भाषा और कुरान वेद
न रीति नीति और रिवाज
न अरदास प्रार्थना नमाज़
इन्सानियत का खुद को तलबगार कर लेता।
बस इतना सा खुद को गुनहगार कर लेता।
न लड़ता खान-पान न वेश के लिए
न दाढ़ी-मूंछ चोटी न केश के लिए
न अजान मन्दिर में प्रवेश के लिए
जीता तो जीता सिर्फ देश के लिए
समरसता को हृदय से स्वीकार कर लेता।
बस इतना सा खुद को गुनहगार कर लेता।