Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Sep 2019 · 2 min read

गीत

वीभत्सता का क्रूर नृत्य

परिणाम था , संहार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

चहुँ ओर थीं , लाशें पड़ीं ।
बिन दाह के , जाती सड़ीं ।
मरघट बनी , रण भू यहाँ ।
दुर्गंध थी , फैली वहाँ ।
आतंक था , चीत्कार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

उर शोक से , पीड़ित हुआ ।
नभ हूक भर , शंकित हुआ ।
विध्वंस से , मन खिन्न था ।
ये युद्ध ही , कुछ भिन्न था ।
कुत्सित घृणित , ललकार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

थी खून से , लथपथ धरा ।
नर मुंड से , भूतल भरा ।
सिर हैं कहीं , धड़ हैं कहीं ।
पस-रक्त शव , बिखरे वहीं ।
ये दृश्य था , व्यभिचार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

खप्पर लिए , काली खड़ी ।
विकराल बन , रण में अड़ी ।
खूनी लटें , ग्रीवा फँसी ।
पी रक्त को , चंडी हँसी।
रंग लाल था , आधार का।
प्रण मौर्य के , विस्तार का।।

दो श्वान थे , शव नोंचते ।
आँखें गड़ा , वो भौंकते ।
कुछ गिद्ध भी , मँडरा रहे ।
आधे कटे , तन खा रहे ।
हर ग्रास था , उद्गार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

तलवार से , तुम प्रीत कर ।
हारे समर , हो जीत कर ।
धोया गया , सिंदूर घर ।
चूड़ी हरी , सब चूर कर ।
अभिशाप था , शृंगार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का।।

पूछे धरा , नृप मौर्य से ।
संतुष्ट हो , इस शौर्य से ?
असि वार ही , क्या कर्म है ?
हिंसा नहीं , सत धर्म है ।
मातम मना , त्यौहार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

माता सभी , धिक्कारतीं ।
चीखें विकट , हुंकारतीं ।
अब बह रहा , दृग नीर था ।
विचलित हुआ , रणधीर था ।
संत्रास था , अधिकार का ।
प्रण मौर्य के , विस्तार का ।।

पग बौद्ध के, पथ पर बढ़े ।
वे शांति की, सीढ़ी चढ़े ।
हिंसा तजी, कर साधना ।
हित दीनता , मन भावना ।
उर प्रेम भर , संसार का ।
प्रण मौर्य के विस्तार का ।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

Edit Post

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 498 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
ये जीवन जीने का मूल मंत्र कभी जोड़ना कभी घटाना ,कभी गुणा भाग
ये जीवन जीने का मूल मंत्र कभी जोड़ना कभी घटाना ,कभी गुणा भाग
Shashi kala vyas
*मृत्यु (सात दोहे)*
*मृत्यु (सात दोहे)*
Ravi Prakash
यही जीवन है
यही जीवन है
Otteri Selvakumar
किसी भी देश काल और स्थान पर भूकम्प आने का एक कारण होता है मे
किसी भी देश काल और स्थान पर भूकम्प आने का एक कारण होता है मे
Rj Anand Prajapati
इतना भी खुद में
इतना भी खुद में
Dr fauzia Naseem shad
💐प्रेम कौतुक-180💐
💐प्रेम कौतुक-180💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
■ देसी ग़ज़ल...
■ देसी ग़ज़ल...
*Author प्रणय प्रभात*
2774. *पूर्णिका*
2774. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ऐसा बदला है मुकद्दर ए कर्बला की ज़मी तेरा
ऐसा बदला है मुकद्दर ए कर्बला की ज़मी तेरा
shabina. Naaz
संघर्षों की एक कथाः लोककवि रामचरन गुप्त +इंजीनियर अशोक कुमार गुप्त [ पुत्र ]
संघर्षों की एक कथाः लोककवि रामचरन गुप्त +इंजीनियर अशोक कुमार गुप्त [ पुत्र ]
कवि रमेशराज
पहाड़ की सोच हम रखते हैं।
पहाड़ की सोच हम रखते हैं।
Neeraj Agarwal
dr arun kumar shastri
dr arun kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गर्म साँसें,जल रहा मन / (गर्मी का नवगीत)
गर्म साँसें,जल रहा मन / (गर्मी का नवगीत)
ईश्वर दयाल गोस्वामी
यादों का सफ़र...
यादों का सफ़र...
Santosh Soni
Sometimes he looks me
Sometimes he looks me
Sakshi Tripathi
हे परम पिता !
हे परम पिता !
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
पिता
पिता
Dr Parveen Thakur
जब कोई साथ नहीं जाएगा
जब कोई साथ नहीं जाएगा
KAJAL NAGAR
विलोमात्मक प्रभाव~
विलोमात्मक प्रभाव~
दिनेश एल० "जैहिंद"
उपहास
उपहास
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
धन तो विष की बेल है, तन मिट्टी का ढेर ।
sushil sarna
सफर दर-ए-यार का,दुश्वार था बहुत।
सफर दर-ए-यार का,दुश्वार था बहुत।
पूर्वार्थ
"सन्त रविदास जयन्ती" 24/02/2024 पर विशेष ...
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
आंखे, बाते, जुल्फे, मुस्कुराहटे एक साथ में ही वार कर रही हो।
Vishal babu (vishu)
ख्याल
ख्याल
अखिलेश 'अखिल'
मतलबी इंसान हैं
मतलबी इंसान हैं
विक्रम कुमार
मत फेर मुँह
मत फेर मुँह
Dr. Kishan tandon kranti
Let yourself loose,
Let yourself loose,
Dhriti Mishra
बैर भाव के ताप में,जलते जो भी लोग।
बैर भाव के ताप में,जलते जो भी लोग।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...