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20 Apr 2020 · 1 min read

गीत

कुकुंभ छंद
विधान-16, 14 मात्राएँ, प्रति चरण 30 मात्राएँ, चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत

‘मौन व्यथा’

शोक द्रवित होकर जीवन में विरह- वेदना सहता हूँ,
मौन व्यथा उद्गारों की ले मंद-मंद मैं जलता हूँ।

धूप-छाँव के खेल निराले निष्ठुर यादें झुलसातीं,
प्यास अधूरी लिए मिलन की कोस भाग्य को रह जातीं।
अवसादित मन की पीड़ा को आज गीत में लिखता हूँ,
मौन व्यथा उद्गारों की ले मंद-मंद मैं जलता हूँ।

पतझड़ जीवन में देकर अब प्यार मुझे क्यों तड़पाता ?
मरु की तपती उजड़ी भू पर प्रेम-विरह क्यों उपजाता?
दर्द छिपाए संघर्षों का सहम-सहम पग रखता हूँ,
मौन व्यथा उद्गारों की ले मंद-मंद मैं जलता हूँ।

गहन अमावस अंतस छायी अँधियारा उर को भाता,
अंतर्मन जब क्रंदन करता अपराधी खुद को पाता।
लक्ष्यहीन, दिग्भ्रमित हुआ मन आज आसरा तकता हूँ,
मौन व्यथा उद्गारों की ले मंद-मंद मैं जलता हूँ।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 1 Comment · 232 Views
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