गीतिका
कारे-कारे कजरारे
बदरा रे नीर बहा रे
तड़पे तपती धरती भी
माटी की तपन बुझा रे
पक्षी प्यासे भटक रहे
जल देकर प्राण बचा रे
त्रास मची गरमी भीषण
शीतल रसधार बहा रे
भीगूंगी तैयार खड़ी
मेरी छत पर आ जा रे
कारे-कारे कजरारे
बदरा रे नीर बहा रे
तड़पे तपती धरती भी
माटी की तपन बुझा रे
पक्षी प्यासे भटक रहे
जल देकर प्राण बचा रे
त्रास मची गरमी भीषण
शीतल रसधार बहा रे
भीगूंगी तैयार खड़ी
मेरी छत पर आ जा रे