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8 Dec 2017 · 1 min read

“गीतिका”

“गीतिका”
तकते मेरी राह, कहो कबतक भटकोगे
रहते तुम चुपचाप, भला कैसे सुलझोगे
हँसती कब दीवार, बिना खिड़की के खोले
इतनी सी है बात, न जाने कब समझोगे।।
मन में होगी आस, पास आये कोयलिया
बिना अधर के राग, सुर वीणा में भरोगे।।
चाहत की बरसात, बदरिया छाए बरसे
भौंरा भीगे डाल, फूल पंखुड़ी बसोगे।।
कुछ तो करो विचार, भली कब माघी बदरी
बिना जेठ के ताप, क्वार में दाल दलोगे।।
जाओ अपने धाम, बनो न राह में रोड़ा
किया करो कुछ काम, ठेस दुख यार सहोगे।।
“गौतम” की गति जान, सकुचि समझाए गोरी
दिखी गैर की नाव, बैठ कर तुम उतरोगे।।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

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