Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Feb 2018 · 8 min read

*गीतिका विधा*

गीतिका का तानाबाना
गीतिका एक लोकप्रिय काव्य विधा है । इसकी परिभाषा और मुख्य लक्षण यहाँ पर स्पष्ट किये जाते हैं।

गीतिका की परिभाषा
गीतिका हिन्दी भाषा-व्याकरण पर पल्लवित एक विशिष्ट काव्य विधा है जिसमें मुख्यतः हिन्दी छंदों पर आधारित दो-दो लयात्मक पंक्तियों के स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं विशेष कहन वाले पाँच या अधिक युग्म होते हैं जिनमें से प्रथम युग्म की दोनों पंक्तियाँ तुकान्त और अन्य युग्मों की पहली पंक्ति अतुकांत तथा दूसरी पंक्ति समतुकान्त होती है।

गीतिका के लक्षण
(1) हिन्दी भाषा औए हिन्दी व्याकरण
गीतिका की भाषा हिन्दी हैं जिसमें अन्य भाषाओं के प्रचलित शब्दो का स्वल्प एवं सुरुचिपूर्ण प्रयोग किया जा सकता है किन्तु हिन्दी-व्याकरण का प्रयोग अनिवार्य है’। उदाहरण के लिए हिन्दी प्रधान गीतिका में ‘सवाल’ शब्द का यथावश्यक प्रयोग तो कर सकते है लेकिन इसका बहुवचन हिन्दी व्याकरण के अनुसार ‘सवालों’ होगा, ‘सवालात’ नहीं।
(2) मापनी या आधार छन्द
गीतिका की पंक्तियों को पद कहते हैं । गीतिका के सभी पद एक ही लय में होते हैं। इस लय को निर्धारित करने के लिए ‘आधार छन्द’ या ‘मापनी’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
आधार छन्द – विधाता (जिसकी मापनी निम्नवत है) –
मापनी – 1222 1222 1222 1222
(3) समान्त और पदान्त
पूरी गीतिका में तुकान्त एक सामान रहता है l तुकान्त में दो खंड होते है — अंत का जो शब्द या शब्द-समूह सभी पदों में समान होता है उसे पदान्त कहते हैं तथा उसके पहले के शब्दों में जो अंतिम अंश सामान रहता है उसे समान्त कहते हैं । कुछ गीतिकाओं में पदान्त नहीं होता है , ऐसी गीतिकाओं को ‘अपदान्त गीतिका’कहते हैं !
(4) मुखड़ा
गीतिका के प्रथम दो पद तुकान्त होते हैं , इन पदों से बने युग्म को मुखड़ा कहते हैं। मुखड़ा के द्वारा ही गीतिका के समान्त और पदान्त निर्धारित होते हैं।कतिपय गीतिकाओं में एक से अधिक मुखड़े भी हो सकते हैं , तब दूसरे मुखड़े को ‘रूप मुखड़ा’ कहते हैं।
(5) न्यूनतम पाँच युग्म
गीतिका के दो-दो पदों को मिलाकर युग्म बनते हैं। पहले युग्म के दोनों पद तुकान्त होते हैं जिसे मुखड़ा कहते हैं और अन्य सभी युग्मों में पहला पद अतुकान्त होता है जिसे ‘पूर्व पद’ या ‘प्रथम पद’ कहते हैं और दूसरा पद तुकान्त होता है जिसे ‘पूरक पद’ कहते हैं। गीतिका में कम से कम
पाँच युग्म होना अनिवार्य है। गीतिका में अधिकतम युग्मों की संख्या का कोई प्रतिबंध नहीं है, तथापि ग्यारह से अधिक युग्म होने पर गीतिका का मूल स्वरूप और प्रभाव प्रायः नष्ट होने लगता है। युग्म की अभिव्यक्ति अपने में स्वतंत्र होनी चाहिए अर्थात युग्म को अपने अर्थ के लिए किसी अन्य का मुखापेक्षी नहीं होना चाहिए। अंतिम युग्म में यदि रचनाकार का नाम आता है तो उसे ‘मनका’ कहते हैं, अन्यथा अंतिका कहते हैं।
(6) विशेष कहन
युग्म के कथ्य को इसप्रकार व्यक्त किया जाता है कि युग्म पूरा होने पर पाठक या श्रोता के हृदय मे एक चमत्कारी विस्फोटक प्रभाव उत्पन्न होता है जिससे उसके मुँह से स्वतः ‘वाह’ निकल जाता है। इस विशेष कहन को अन्योक्ति, वक्रोक्ति या व्यंग्योक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है। इस विशेष कहन को ‘गीतिकाभास’ (उर्दू में ‘ग़ज़लियत’) भी कह सकते हैं। विशेष कहन परिभाषित करना प्रायः कठिन है किन्तु इसकी कला को समझना सरल है जिसके अंतर्गत युग्म के प्रथम पद में कथ्य की प्रस्तावना की जाती है जैसे कोई धनुर्धर प्रत्यंचा पर तीर चढ़ाकर लक्ष्य का संधान करता है और फिर पूरक पद में कथ्य का विस्फोटक उदघाटन करता है जैसे धनुर्धर तीर छोड़ कर लक्ष्य पर प्रहार कर देता है।

उदाहरण

क्षम्य कुछ भी नहीं, बात सच मानिए।
भोग ही है क्षमा , तात सच मानिए।

भाग्य तो है क्रिया की सहज प्रति-क्रिया,
हैं नियति-कर्म सहजात सच मानिए।

है कला एक बचकर निकलना सखे,
व्यर्थ ही घात-प्रतिघात, सच मानिए।
घूमते हैं समय की परिधि पर सभी,
कुछ नहीं पूर्व-पश्चात, सच मानिए।

वह अभागा गिरा मूल से , भूल पर –
कर सका जो न दृगपात सच मानिए।

सत्य का बिम्ब ही देखते हैं सभी,
आजतक सत्य अज्ञात ,सच मानिए।

– ओम नीरव
विन्दुवत व्याख्या :-

(1) इस गीतिका में हिन्दी भाषा और हिन्दी व्याकरण का प्रयोग किया गया है।
(2) आधार छन्द– वाचिक स्रग्विणी (मूल स्रग्विणी छन्द या वर्णवृत्त मे रगण अर्थात 212 या गालगा की चार आवृत्तियों के साथ 12 वर्ण होते हैं और किसी गुरु के स्थान पर दो लघु प्रयोग करने की छूट नहीं होती है किन्तु जब इस छूट का प्रयोग किया जाता है तो इसे ‘वाचिक स्रग्विणी कहते हैं)। यहाँ पर वाचिक भार के साथ वाचिक मापनी का उल्लेख किया जा रहा है।
मापनी – 212 212 212 212
गालगा गालगा गालगा गालगा
इसे मुखड़े के मात्रा-कलन मे निम्नप्रकार देखा जा सकता है –
क्षम्य कुछ/ भी नहीं/, बात सच/ मानिए।
212/ 212/ 212/ 212/
भोग ही/ है क्षमा/, तात सच/ मानिए।
212/ 212/ 212/ 212/
(3) पूरी गीतिका का तुकान्त है – ‘आत सच मानिए’ , जिसके दो खंड हैं – समान्त ‘आत’ और पदान्त ‘सच मानिए’ । इसे गीतिका के युग्मों में निम्नप्रकार देखा जा सकता है –
बात सच मानिए = ब् + आत सच मानिए
तात सच मानिए = त् + आत सच मानिए
जात सच मानिए = ज् + आत सच मानिए
घात सच मानिए = घ् + आत सच मानिए
चात सच मानिए = च् + आत सच मानिए
पात सच मानिए = प् + आत सच मानिए
ज्ञात सच मानिए = ग्य् + आत सच मानिए
(4) मुखड़ा निम्नप्रकार है –
क्षम्य कुछ भी नहीं, बात सच मानिए।
भोग ही है क्षमा, तात सच मानिए।
इसके दोनों पद तुकान्त हैं और इन्हीं पदों से तुकान्त ‘आत सच मानिए’ का निर्धारण होता है जिसका पूरी गीतिका में विधिवत निर्वाह हुआ है।
(5) न्यूनतम पाँच युग्म के प्रतिबंध का निर्वाह करते हुये इस गीतिका मे छः युग्म हैं । प्रत्येक युग्म का पूर्व पद अतुकान्त तथा पूरक पद तुकान्त है। प्रत्येक युग्म की अभिव्यक्ति स्वतंत्र है। अंतिम युग्म में रचनाकार का उपनाम न आने से यह मनका की कोटि में नहीं आता है।
(6) विशिष्ट कहन की बात का निर्णय पाठक स्वयं करके देखें , जिस युग्म में वह विशेष कहन न हो उसे गीतिका का युग्म नहीं मानना चाहिए या फिर दुर्बल युग्म मानना चाहिए।

गीतिका और उर्दू ग़ज़ल

गीतिका और उर्दू ग़ज़ल में कुछ समानताएं है जबकि कुछ असमानताएं भी हैं। हम इनका अलग-अलग उल्लेख निम्नवत कर रहे हैं –

गीतका और उर्दू ग़ज़ल में समानताएं
(1) दोनों की पंक्तियों को समान लय में होना अनिवार्य है। गीतिका या ग़ज़ल की लयात्मक पंक्ति को हिन्दी में ‘पद’ और उर्दू में ‘मिसरा’ कहते हैं।
(2) दोनों में प्रारम्भ से अंत तक समान्त और पदान्त एक जैसे अर्थात अपरिवर्तित रहते हैं। उर्दू में समान्त को ‘काफिया’ और पदान्त को ‘रदीफ़’ कहते हैं।
(3) दोनों में प्रथम युग्म अर्थात मुखड़ा के दोनों पद तुकांत होते हैं। उर्दू में युग्म को ‘शेर’ और मुखड़ा को ‘मतला’ कहते हैं।
(4) दोनों में कुल मिलाकर न्यूनतमपाँच युग्म होना अनिवार्य है। दोनों में मुखड़ा को छोडकर अन्य युग्मों के पूर्वपद (मिसरा ऊला) अतुकान्त और पूरक पद (मिसरा सानी) तुकान्त होता है। दोनों में युग्म कीअभिव्यक्ति स्वतंत्र होनी चाहिए। दोनों के अंतिम युग्म में रचनाकर का उपनाम आने पर उसे विशेष नाम से जाना जाता है जिसे हिन्दी में मनका और उर्दू में मक्ता कहते हैं।
(5) दोनों के युग्मों में ‘विशेष कहन’ अनिवार्य होती है। इसे हिन्दी में ‘गीतिकाभास’ और उर्दू में ‘ग़ज़लियत’ कह सकते हैं।

गीतका और उर्दू ग़ज़ल में भिन्नताएँ
(1) गीतिका की लय किसी सनातनी छंद या लौकिक छन्द अथवा मापनी पर आधारित हो सकती है जबकि ग़ज़ल की लय केवल मापनी (बहर) पर ही आधारित होती है।
(2)गीतिका में केवल व्यावहारिक हिन्दी भाषा और हिन्दी व्याकरण ही मान्य है जबकि ग़ज़ल में सामान्यतः उर्दू भाषा और उर्दू व्याकरण मान्य होती है।
(3)’गीतिका’ में हिंदी शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से अपेक्षित है और साथ हीइतर भाषाओँ जैसे उर्दू , अंग्रेजी आदि के लोक प्रचलित शब्दों का सुरुचिपूर्ण प्रयोग भी स्वीकार्य है किन्तु ऐसे शब्दों पर व्याकरण हिन्दी की ही लागू होगी। विस्तृत व्याख्या के लिए दृष्टव्य है आलेख –‘गीतिका की भाषा’।
(4) गीतिका में मात्राभार की गणना , संधि – समास , तुकांतता या समान्तता आदि का निर्धारणसामान्यतः हिंदी व्याकरण के अनुसार ही मान्य है,जबकि ग़ज़ल में इन बातों का निर्धारण उर्दू व्याकरण और उर्दू उच्चारण के आधार पर होता है।
(5) ‘गीतिका’ में अग्रलिखित बातें हिन्दी भाषा-व्याकरण के अनुरूप न होने के कारण मान्य नहीं हैं –
क – अकार-योग (अलिफ़-वस्ल) जैसे ‘हम अपना’ को ‘हमपना’ पढ़ना ,
ख – पुच्छ-लोप (पद के अंतिम लघु का लोप) जैसे ‘पद के अंत में आने पर ‘कबीर’ को 12 मात्राभार में ‘कबीर्’ या ‘कबी’ जैसा पढना ,
ग – समान्ताभास (ईता-दोष) जैसे ‘चलना’ और ‘बचना’ में समान्त दोषपूर्ण मानना आदि
जबकि ग़ज़ल में ये बातें मान्य हैं।
(6) गीतिका के शिल्प विधान की चर्चा में स्वरकों – लगा, लगागा, गालगागा, ललगालगा आदि अथवा लगा, यमाता, राजभागा, सलगालगा आदि का प्रयोग होगा जबकि ग़ज़ल में इनके स्थान पर रुक्नों – फअल, मुफैलुन, फ़ाइलातुन, मुतफाइलुन आदि का प्रयोग होता है।

संक्षेप में
कहा जा सकता है कि गीतिका के रूप में केवल वही ग़ज़ल मान्य है (क) जिसमें व्यावहारिक हिन्दी भाषा की प्रधानता हो (ख) हिन्दी व्याकरण की अनिवार्यता हो और (ग) हिन्दी छन्दों का समादर हो।

गीतिका की भाषा

गीतिका में केवल व्यावहारिक हिन्दी भाषा और हिन्दी व्याकरण ही मान्य है। इस संदर्भ में आवश्यक विंदुओं पर चर्चा यहाँ पर की जा रही है।

रेखांकनीय विंदु
(1)’गीतिका’ में हिंदी शब्दों का प्रयोग प्रमुखता से होना चाहिए किन्तु इतर भाषाओं जैसे उर्दू, अंग्रेजी आदि के लोक प्रचलित शब्दों का सुरुचिपूर्ण प्रयोग भी स्वीकार किया जाना चाहिए l
(2) यदि इतर भाषाओँ जैसे उर्दू , अंग्रेजी आदि के लोक-प्रचलित शब्दों का प्रयोग होता है तो उन शब्दों का प्रयोग उसी रूप में होना चाहिए जिस रूप में वे हिंदी में बोले जाते हैं और उन शब्दों पर वर्तनी और व्याकरण हिंदी की ही लागू होनी चाहिए। किसके स्थान पर किसको वरीयता देना अपेक्षित है , इसके कुछ उदहारण केवल बात को स्पष्ट करने के लिए –
शह्र>शहर , नज्र>नज़र , फस्ल>फसल , नस्ल>नसल
काबिले-तारीफ़>तारीफ़ के क़ाबिल , दर्दे-दिल>दिल का दर्द
दिलो-जान>दिल-जान , सुबहो-शाम>सुबह-शाम
आसमां>आसमान , ज़मीं>ज़मीन
अश’आर>शेरों , सवालात>सवालों , मोबाइल्स>मोबाइलों , चैनेल्स>चैनलों,अल्फ़ाज़ > लफ़्ज़ों
(3) गीतिका में मात्राभार की गणना , संधि-समास , तुकांतता या समान्तता आदि का निर्धारणसामान्यतः हिंदी व्याकरण के अनुसार ही मान्य है,जबकि ग़ज़ल में इन बातों का निर्धारण उर्दू व्याकरण और उर्दू उच्चारण के आधार पर होता है।
उदाहरणार्थ : टीका, भावना, पूजा … आदि में समान्त केवल स्वर ‘आ’ है जो हिन्दी गीतिका में अनुकरणीय नहीं है (यह अलग बात है कि लोकाग्रह को देखते हुए पचनीय मान लिया गया है) जबकि उर्दू काव्य में पूर्णतः अनुकरणीय है। इसका कारण भी संभवतः यही है कि उर्दू में मात्रा के स्थान पर पूरा वर्ण प्रयोग होता है जैसे आ, ई, ऊ की मात्रा के स्थान पर क्रमशः अलिफ, ए, वाउ वर्णों का प्रयोग होता है।
(4)योजक युक्त शब्द जैसे दर्दे-दिल , सुबहो-शाम …. आदि एवं उपर्युक्त विंदु 2 और 3 में वर्णित अन्य प्रयोग हिंदी व्याकरण के अनुरूप न होने के कारण सामान्यतः अमान्य हैं, किन्तु यदि ऐसे शब्दों का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजनवश और विशेष काव्य-सौन्दर्य के साथ विशेष परिस्थिति में किया जाता है तो उसे पचनीय माना जा सकता है l
(5) ‘गीतिका’ में अग्रलिखित बातें हिन्दी भाषा-व्याकरण के अनुरूप न होने के कारण मान्य नहीं हैं –
क – अकार-योग (अलिफ़-वस्ल) जैसे ‘हम अपना’ को ‘हमपना’ पढ़ना ,
ख – पुच्छ-लोप (पद के अंतिम लघु का लोप) जैसे ‘पद के अंत में आने पर ‘कबीर’ को 12 मात्राभार में ‘कबीर्’ या ‘कबी’ जैसा पढना ,
ग – समान्ताभास (ईता-दोष) जैसे ‘चलना’ और ‘बचना’ में समान्त दोषपूर्ण मानना।
जबकि ग़ज़ल में ये बातें मान्य हैं।
(6) गीतिका की चर्चा में हिंदी पदावली को चलन में लाने का प्रयास किया जायेगा किन्तु पहले से प्रचलित उर्दू पदावली के प्रति कोई उपेक्षा का भाव नहीं रहेगा। कुछ उदहारण —

युग्म = शेर
गीतिका = विशेष हिंदी-ग़ज़ल
प्रवाह = रवानी
पद = मिसरा
पूर्व पद = मिसरा ऊला
पूरक पद = मिसरा सानी
पदान्त = रदीफ़
समान्त = काफिया
मुखड़ा = मतला
मनका = मक़ता
मापनी = बहर
स्वरक = रुक्न
स्वरावली = अरकान
मात्रा भार = वज़्न
कलन = तख्तीअ
मौलिक मापनी = सालिम बहर
मिश्रित मापनी = मुरक्कब बहर
पदान्त समता दोष = एबे-तकाबुले-रदीफ़
अपदान्त गीतिका = ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल
अकार योग = अलिफ़ वस्ल
पुच्छ लोप = पद के अंतिम लघु का लोप
धारावाही गीतिका = मुसल्सल ग़ज़ल
गीतिकाभास = ग़ज़लियत
समान्ताभास = ईता
वचनदोष = शुतुर्गुर्बा … आदि।
(7) गीतिका के शिल्प विधान की चर्चा में स्वरकों – लगा, लगागा, गालगागा, ललगालगा आदि अथवा लगा, यमाता, राजभागा, सलगालगा आदि का प्रयोग होगा जबकि ग़ज़ल में इनके स्थान पर क्रमशः रुक्नों – फअल, मुफैलुन, फ़ाइलातुन, मुतफाइलुन आदि का प्रयोग होता है।

संक्षेप में
हिन्दी छंदों पर आधारित गीतिका की भाषा में ऐसी व्यावहारिक हिन्दी भाषा और हिन्दी व्याकरण का प्रयोग अपेक्षित है जिसमें हिन्दी की अपनी सुगंध हो और अपनी मिठास हो।
——————————————————————————
संदर्भ ग्रंथ – ‘गीतिका दर्पण’, लेखक- ओम नीरव, पृष्ठ- 192, मूल्य- 250 रुपये, संपर्क- 9299034545

Category: Sahitya Kaksha
Language: Hindi
Tag: लेख
23 Likes · 6 Comments · 4084 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2234.
2234.
Dr.Khedu Bharti
- ଓଟେରି ସେଲଭା କୁମାର
- ଓଟେରି ସେଲଭା କୁମାର
Otteri Selvakumar
बेरोजगारी
बेरोजगारी
साहित्य गौरव
बे-असर
बे-असर
Sameer Kaul Sagar
जीवन का हर वो पहलु सरल है
जीवन का हर वो पहलु सरल है
'अशांत' शेखर
दीवाने प्यार के हम तुम _ छोड़े है दुनियां के भी  गम।
दीवाने प्यार के हम तुम _ छोड़े है दुनियां के भी गम।
Rajesh vyas
मां से ही तो सीखा है।
मां से ही तो सीखा है।
SATPAL CHAUHAN
माईया दौड़ी आए
माईया दौड़ी आए
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
Pata to sabhi batate h , rasto ka,
Pata to sabhi batate h , rasto ka,
Sakshi Tripathi
"चाँद"
Dr. Kishan tandon kranti
न किसी से कुछ कहूँ
न किसी से कुछ कहूँ
ruby kumari
हाय री गरीबी कैसी मेरा घर  टूटा है
हाय री गरीबी कैसी मेरा घर टूटा है
कृष्णकांत गुर्जर
दोहा -
दोहा -
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
नेमत, इबादत, मोहब्बत बेशुमार दे चुके हैं
नेमत, इबादत, मोहब्बत बेशुमार दे चुके हैं
हरवंश हृदय
" मेरा रत्न "
Dr Meenu Poonia
चंद ख्वाब मेरी आँखों के, चंद तसव्वुर तेरे हों।
चंद ख्वाब मेरी आँखों के, चंद तसव्वुर तेरे हों।
Shiva Awasthi
इतना गुरुर न किया कर
इतना गुरुर न किया कर
Keshav kishor Kumar
You never know when the prolixity of destiny can twirl your
You never know when the prolixity of destiny can twirl your
Sukoon
होली पर बरसात हो , बरसें ऐसे रंग (कुंडलिया)*
होली पर बरसात हो , बरसें ऐसे रंग (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
समर्पण.....
समर्पण.....
sushil sarna
Banaras
Banaras
Sahil Ahmad
ज़िंदगी हम भी
ज़िंदगी हम भी
Dr fauzia Naseem shad
उन से कहना था
उन से कहना था
हिमांशु Kulshrestha
समाज या परिवार हो, मौजूदा परिवेश
समाज या परिवार हो, मौजूदा परिवेश
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
* मन में उभरे हुए हर सवाल जवाब और कही भी नही,,
* मन में उभरे हुए हर सवाल जवाब और कही भी नही,,
Vicky Purohit
दायरे से बाहर (आज़ाद गज़लें)
दायरे से बाहर (आज़ाद गज़लें)
AJAY PRASAD
■ सीधी बात, नो बकवास...
■ सीधी बात, नो बकवास...
*Author प्रणय प्रभात*
फूल
फूल
Pt. Brajesh Kumar Nayak
माॅ॑ बहुत प्यारी बहुत मासूम होती है
माॅ॑ बहुत प्यारी बहुत मासूम होती है
VINOD CHAUHAN
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
Loading...