गिर जाता है हर बार सँभल क्यों नहीं जाता
गिर जाता है हर बार सँभल क्यों नहीं जाता
अब डर ये तेरे दिल से निकल क्यों नहीं जाता
मर जाता है इक बार में ही टूट कर यहाँ
ऐ ख्वाब तू आंखों में मचल क्यों नहीं जाता
ये दिल बना पत्थर लिया कैसे जियेगा तू
बन आँसुओं की धार पिघल क्यों नहीं जाता
वन नफरतों का फैलता ही जा रहा दिल में
ज्वाला में मुहब्बत की ये जल क्यों नहीं जाता
रो खूब गमों में ले तो हँस भी खुशी में तू
अवसाद से यूँ अपने निकल क्यों नहीं जाता
दे जाता भी ये ‘अर्चना’ मुजरिम को सहारा
अंधा है ये कानून बदल क्यों नहीं जाता
26-06-2019
डॉ अर्चना गुप्ता