Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Aug 2020 · 3 min read

सुधार अभियान

उस जमाने में चावल, गेहूँ, दाल, गलत संगति में पड़ने के कारण अक्सर जब घर आते थे कमबख्त बिगड़े हुए ही आते थे।

अब इसमें इनकी कोई गलती होती थी या तो वो खुदरा दुकानदार ही बिगाड़ के भेजता था, या फिर गल्ले का व्यापारी या मंडी में इनके साथ जोर जबरदस्ती की जाती, ये जांच का विषय था।

मतलब ये कि, इनकी जात के साथ छेड़खानी होती जरूर थी, और ये भी ढीठ बच्चों की तरह अपने दुष्ट साथियों के साथ ही घर घुसते थे। धूल, मिट्टी, कंकर इनमे छुपे रहते थे।

एक निश्चित मात्रा में मिलावट तो स्वीकार्य होती थी , इसकी लक्ष्मण रेखा लांघते ही ,घर की महिलाएं अपनी पैनी अनुभवी दृष्टि से फ़ौरन ताड़ लेती थी और पूछ बैठती थी, कहाँ से लाये हो। दुकानदार का नाम पता चलते ही ,उसको कोसना चालू करने के बाद, सामान लाने वाले की खबर ली जाती थी।

एक योग्य पुरुष का पहला लक्षण उसके घर के सामान लाने की चतुराई देख कर ही होती है । ये समझ मे आने लगा था।

नहीं तो, ये तो बड़े भोले हैं जी, दुकानदार जो पकड़ा देता है ये बैल की तरह सर पर उठाये ले आते हैं।

मेरे एक पड़ोस के सीधे साधे सरकारी मुलाजिम को तो ये भी सुनने को मिला, कि अगली बार जब सामान लाने जाये तो उस भाईसाहब को साथ लेकर ही जाए। उनको अकल है कि चीज़ें कैसे लायी जाती है और उनसे सीख भी लेना।

ये समझदार भाईसाहब आस पड़ोस में अपनी इस प्रतिभा के लिए मशहूर थे।

बेचारे सरकारी मुलाज़िम को महसूस जरूर होता होगा कि वो कितने अहमक पैदा हुए हैँ।

कभी कभी लाया हुआ सामान उनको वापस करने जाना पड़ता था तो बड़ी बेइज्जती सी महसूस होती होगी , दुकानदार आता देख मुस्कुरा पड़ता था। समझ जाता था कि घर में आज जम कर पड़ी है।

वो बोल पड़ता, मैंने तो पहले ही कही थी पंजाब वाली दाल दे दूँ,आपने कुछ कहा नहीं , सो मैंने लोकल दाल पैक कर दी।
लाने वाला बेचारा ये सोच रहा था कि ये बात इसने कही कब थी।

फिर एक दिन उस भाईसाहब से साथ इन बेचारे को जाना पड़ा रास्ते भर उनके रौब चले। अरे रुको यार एक पान खा लूं , तुम तो भागे ही चले जा रहे हो या फिर किसी परिचित के मिलने पर , इशारा करके कहते , इनको घर के सामान खरीदने की ट्रेनिंग दे रहा हूँ, वगैरह।

दुकान पर पहुंच कर , ये भाईसाहब पहले तराजू के पलड़ों के नीचे हाथ फेर कर ये तय कर रहे थे की कोई चुम्बक तो नही लगा रखी , फिर वजन को हाथ से उठाकर देखा, सामान को अच्छी तरह परखने के बाद , सामान तौल कर कागज के ठोंगे में जब डाला गया । तब उनके झोले से अपना तराजू प्रकट हुआ, वो दुकानदार को कहने लगे, एक बार इस पर तौलो तो जरा। दुकानदार उनको खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा।

मुझे ये तो नही मालूम, उनकी ये ट्रेनिंग कितने दिनों चली।

गौरतलब है कि,लाये हुए सामान का शुद्धिकरण तो चुग बीन कर होता ही था ,घर के मर्दों को भी उलाहना देकर, ठोक बजाकर सुधार ही लिया जाता था।

आज जब खाने पीने की चीज़ों को शॉपिंग मॉल में जब साफ सुथरी प्लास्टिक की सीलबंद पैकेट्स में देखता हूँ तो गांव के उस चतुर दुकानदार का चेहरा याद आ ही जाता है। जो कहता हुआ सुनाई देता है, आप ये ले जाओ, मेरी गारंटी है।
साथ मे उन समझदार भाईसाहब का तराजू अब भी आंखों के सामने बरबस ही आ जाता है।

Language: Hindi
3 Likes · 8 Comments · 512 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Umesh Kumar Sharma
View all
You may also like:
यादों का बसेरा है
यादों का बसेरा है
Shriyansh Gupta
*तेरा इंतज़ार*
*तेरा इंतज़ार*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
■ पाठक बचे न श्रोता।
■ पाठक बचे न श्रोता।
*Author प्रणय प्रभात*
इश्क समंदर
इश्क समंदर
Neelam Sharma
आमदनी ₹27 और खर्चा ₹ 29
आमदनी ₹27 और खर्चा ₹ 29
कार्तिक नितिन शर्मा
आत्मा शरीर और मन
आत्मा शरीर और मन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
"गीत"
Dr. Kishan tandon kranti
वो मुझे
वो मुझे "चिराग़" की ख़ैरात" दे रहा है
Dr Tabassum Jahan
विचार और भाव-1
विचार और भाव-1
कवि रमेशराज
💐Prodigy Love-23💐
💐Prodigy Love-23💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जीवन की आपाधापी में, न जाने सब क्यों छूटता जा रहा है।
जीवन की आपाधापी में, न जाने सब क्यों छूटता जा रहा है।
Gunjan Tiwari
भाषाओं का ज्ञान भले ही न हो,
भाषाओं का ज्ञान भले ही न हो,
Vishal babu (vishu)
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
खरीद लो दुनिया के सारे ऐशो आराम
Ranjeet kumar patre
Ghazal
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
दिल की दहलीज़ पर जब कदम पड़े तेरे ।
दिल की दहलीज़ पर जब कदम पड़े तेरे ।
Phool gufran
White patches
White patches
Buddha Prakash
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
सब दिन होते नहीं समान
सब दिन होते नहीं समान
जगदीश लववंशी
गुस्सा दिलाकर ,
गुस्सा दिलाकर ,
Umender kumar
मन से भी तेज ( 3 of 25)
मन से भी तेज ( 3 of 25)
Kshma Urmila
#justareminderekabodhbalak
#justareminderekabodhbalak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
3056.*पूर्णिका*
3056.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
रिश्ते
रिश्ते
Dr fauzia Naseem shad
"सुनो एक सैर पर चलते है"
Lohit Tamta
मिट्टी बस मिट्टी
मिट्टी बस मिट्टी
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
जहाँ करुणा दया प्रेम
जहाँ करुणा दया प्रेम
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
मछली के बाजार
मछली के बाजार
Shekhar Chandra Mitra
मेरे प्यारे भैया
मेरे प्यारे भैया
Samar babu
हाइकु
हाइकु
अशोक कुमार ढोरिया
भ्रम का जाल
भ्रम का जाल
नन्दलाल सुथार "राही"
Loading...