गांव की पगडण्डी
गांव की पगडण्डी
*******************
हमरा* गांव मे पूज रहे सब
माई* दूर्गा चण्डी,
जाने का बस राह एक ठो
पूर्व पतरी* पगडण्डी।
बड़ा सुघर* लागत* है मेला
नाम लुअठहा* चण्डी,
गांव के बीचोबीच से जाला*
वहां तलक पगडण्डी।
गाठ जोड़ भईया* संग बऊधी*
पूजन जाईत* चण्डी,
वहां पूजारी हर दिन रहते
कहते हैं उन्हें डण्डी। (डण्डी बाबा)!
बहुते* कसके* वेद वो पढते
सभी कहें भरभण्डी*,
आध* कोस* तक गूंज रही
गांव की वह पगडण्डी।
बने प्रसाद दलभरुवी* रोटी
रसीयाव* माटी* के हांडी,
रामनवमी को चढे चढावा
खुश होती हैं चण्डी।
…………………….
शब्दार्थ
हमरा= हमारा
लागत = लगता है
माई = माँ
पतरी = संकरी, पतला
सुघर = सुंदर
लुअठहा = देवी स्थान
जाला = जाते है
भईया = भैया
बऊधी = बड़ी भाभी
जाईत = जा रहा, रही
बहुते = बहुत
कसके = जोर लगाकर, तेज बोलना, चिल्लाना
भरभण्डी = तेज बोलने वाला
आध = आधा
कोस = तीन कि.मी को कोस कहा जाता है
दलभरुवी – दाल भरी रोटी
रसीयाव = गुण का खीर
माटी = मिट्टी
————-✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा , पश्चिमी चम्पारण
बिहार—८४५४५५