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2 Oct 2019 · 2 min read

गांधी- विचार के आदर्श जीवन को फिर राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की आवश्यकता हैं..

महात्मा गांधी समय की कसौटी पर जितना खरा उतरते जा रहें हैं, वैसी मिसाल मिलना मुश्किल है । उनकी 150 वीं जयंती पर उनका स्मरण करते हुए यह रेखांकित करना जरूरी है कि उन्होंने न केवल शान्ति और अहिंसा की राह पर चलते हुए एक मजबूत साम्राज्यवादी ताकत को झुकने को मजबूर किया था, बल्कि ऐसी राह भी दिखाई थी ,जिस पर चलकर दुनिया को बेहतर बनाया जा सकता हैं ।
इस समय देश में जो हो रहा है उसे गांधी विचार से जुड़े लोग कैसे देखते-समझते हैं, इसका ठीक से अनुमान लगाना कठिन है ।
एक कारण शायद यह है कि देश में राजनीति की बढ़ती सर्वग्रासिता से वे ज्यादातर अछूते रहें है । उनका रचनात्मक काम करने का क्षेत्र राजनीति नहीं है, बल्कि उससे काफी दूर है । दुर्भाग्य से अब हमारा समय ऐसा नहीं है कि राजनीति को छुट्टा छोड़ दिया जाए, क्योंकि राजनीति किसी भी क्षेत्र को अपने प्रभाव में लेने से मुक्त नहीं छोड़ रही हैं ।
इसलिए महात्मा गांधी के जन्म के डेढ़ सौवें(150) वर्ष में गांधी-विचार को फिर राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की दरकार है। गांधी-विचार इस समुची राजनीति का प्रतिबिन्दु , प्रतिरोध है । गांधी- विचार से जुड़े लोग विनयी और संकोची होते है । बढ़-चढ़कर बोलना , औरों को आक्रांत करना, दूसरों की अवज्ञा करना आदि उनके स्वभाव और व्यवहार में नही होता, जबकि सक्रिय राजनीति में इन्ही का बोलबाला है । गांधी जी की 150 वीं जयंती पर इस विचार को कुछ अधिक मुखर ,अहिंसक होते हुए उग्र और संकोचहीन होने की जरूरत है ।
वह अपनी बुनियादी नैतिकता को कतई न तजे , पर हालात के अनुरूप उसका पुनराविष्कार करें यह जरूरी है । जब राजनीति ने भय और आतंक का माहौल पैदा कर दिया हैं, तब यह जरूरी है कि यह अहिंसक विचार – उग्रता निर्भय और स्पष्ट हो और दूसरों को भी निर्भय प्रतिरोध के लिए उत्साहित-प्रेरित करें…

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 362 Views
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