गाँधी एक बार भारत में
गाँधी एक बार भारत में
फिर से आकर देखो तो,
जो फसल तुम बोकर गये
उसको आकर सींचो तो ।
सत्य – अहिंसा तो देखो
किताबी नारे लगते हैं,
सुनने में ये दोनों ही
बहुत भले से लगते हैं ।
जनता इनको तो केवल
मतलब से गले लगाती है,
प्रेम की महिमा तो जाने
किन गलियों में मिलती है,
इंसाँ को इंसाँ पर
दया नजर न आती है।
सच मानों तो गली गली में
नफरत घर बसाती है ।
गांधी आओ बचा लो तुम
तुम अहिंसा के पुजारी थे ,
मनसा वाचा तुम ही तो
गीत अहिंसा का गाते थे ,
तुमको तो विश्वास बहुत था
अपने इन हथियारों पर,
फिर कैसे ये देश तुम्हारा
इस दलदल में रहा फँसकर ।
कैसे निकलेगा इन सबसे
आकर जरा बताओ तुम ,
राष्ट्रपिता घर को अपने
आकर अब संभालो तुम ।
डॉ रीता 28/09/2016
आया नगर,नई दिल्ली- 47