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19 Nov 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

ख़ूब़सूरत ग़ुनाह हो जाए।
दिल ये उन पै तब़ाह हो जाए।
फ़लसफ़े छोड़ दो अरे वाइज़,
द़ीद की जो पनाह़ हो जाए ।
मेरा तेरे सिवा नहीं कोई ,
इसका तू ही ग़वाह हो जाए ।
आह से आह तक मिले जो तू,
आह भरने की आह हो जाए ।
काफ़िये खिल उठें रदीफ़ों से,
नज्म़ की वाह-वाह हो जाए ।
मक्त़े के श़ेर की ज़रूरत क्या है,
नज्म़ ही जो निग़ाह हो जाए ।

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