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13 Apr 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

जिन्दगी का कोई पल अनछुया न रह जाए
बुझा शाम का कोई भी दिया न रह जाए
लाना है हर बात को ज़माने के सामने
अंजाने में कोई बात छिपा न रह जाए
हर पेज को भर दीजिए अपने कलम से
कोई भी दर्द का पन्ना मिटा न जाय
आ जाइए दोस्तों जमाने के सामने
तहरीर पन्नो में ही लिखा न रह जाए
ऐ काश!आये खुबसूरत जमाना “नूरी”
हमेशा की तरह दिल टूटा न रह जाए।

नूरफातिमा खातून “नूरी”
‌‌‌१३/४/२०२०

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