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10 Apr 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

महका दिया है तूने पाकीज़गी से यूं।
पहचानती है दुनिया दीवानगी से अब।।

देखा नहीं है उसको सच बात है लेकिन।
मिलने लगा हूं हर दिन उस अजनबी से अब।।

जो भी दिया है उसने काफी दिया है ये।
शिकवा नहीं है कुछ भी तो जिंदगी से अब।।

कवि गोपाल पाठक,
बरेली(उप्र)

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