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2 Aug 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

हाले दिल अपना अगर आप ग़ज़ल में कहते
कैसा था दर्दे सफ़र आप ग़ज़ल में कहते

कैसे घायल हुआ दिल आपका इस महफ़िल में
चल गया तीरे नज़र आप ग़ज़ल में कहते

एक पत्थर जो लगा धोके का आकर साहेब
क्या हुआ दिल पे असर आप ग़ज़ल में कहते

रात मुफ़लिस की अंधेरों में है कैसे गुज़री
और हुई कैसे सहर आप ग़ज़ल में कहते

दिल थे पत्थर के जहाँ लोग थे पत्थर के वो
बे वफ़ा का था नगर आप ग़ज़ल में कहते

आपके ग़ज़लों की हम शान बढ़ाते हमदम
हमको गर जाने जिगर आप ग़ज़ल में कहते

ज़ख़्म खाए हैं जो उल्फ़त में उन्हें ऐ ‘प्रीतम”
प्यार का मीठा समर आप ग़ज़ल में कहते

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

1 Like · 204 Views
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