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7 Jun 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

——ग़ज़ल—-

सबके दिल में खिली है कली ईद की
जिस तरफ़ देखो है रौशनी ईद की

चाँद निकला फ़लक से ढली शाम जब
नूर बिखरा रही चाँदनी ईद की

आज दुश्मन भी मिलते गले प्यार से
ऐसी आई सुहानी घड़ी ईद की

बाद रमज़ान के चलके तैबा से ये
आ गयी है हवा मख़मली ईद की

शाह मुफ़लिस सभी आज मिल कर गले
बाँटने में लगे हैं खुशी ईद की

होंगी अब बारिशें बरक़तों की मियाँ
छा गयी है घटा सुरमई ईद की

इतना “प्रीतम” पे करना क़रम या खुदा
तेरे दर पे मैं दूँ हाज़िरी ईद की

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

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