ग़ज़ल
मेरा तो कोई अभी इम्तिहान बाकी है
जो चश्मे नाज़ में ताजा उफान बाकी है
पनाह दर पे तुम्हारे नहीं तो ग़म ही नहीं
अभी तो सारा ज़मीं आशमान बाकी है
तुम्हारे ग़म की ये परछाइयाँ सताती हैं
हरेक ज़ख़्म का दिल पे निशान बाकी है
परों को काट के सोचा उडे़गा कैसे मगर
अभी तो हौसलों बाकी उडान बाकी है
कभी बिख़रने नहीं देगा तुमको ऐ फूलों
मेरे चमन का अभी बाग़बान बाकी है
कहानी किस्से तो तुमने बहुत सुने लेकिन
ये मेरे दिल की अभी दास्तान बाकी है
महल गिराया है “प्रीतम” के ख़्वाबों का लेकिन
तेरे क़रम का शिक़स्ता मकान बाकी है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)