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8 Jun 2019 · 1 min read

ग़ज़ल- “रिझाती है मुझे”

ज़िन्दगी तू क्यों सताती है मुझे।
गीत यादों के सुनाती है मुझे।

आसमां में संग तारों के कभी
चांद बन कर तू रिझाती है मुझे।

वो किनारा झील का सूना पड़ा
चाह तेरी खींच लाती है मुझे।

दिल में तेरे प्यार की जलती शमा
रोशनी वो खुद दिखाती है मुझे।

मैं अकेला हूँ कहां है साथ तू
सांस बन तू याद आती है मुझे।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

1 Like · 1 Comment · 201 Views
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