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12 Nov 2017 · 1 min read

ग़ज़ल: मुझे बहकाने लगी है ।

ग़ज़ल: मुझे बहकाने लगी है ।
// दिनेश एल० “जैहिंद”

जब से खामोशियाँ मुस्काने लगी हैं,
मेरी कुछ ख्वाहिशें सुगबुगाने लगी हैं ।

अब तलक मोहब्बत से अनजान था मैं,
तेरी मुस्कान मुझे बहकाने लगी है ।

मुझ परिंदे को इश्क़ की हवा लगी के,
तेरी उलफ़त धड़कन बढ़ाने लगी है ।

इश्क़-सा मज़ा कहीं और नहीं है यार,
मेरी अक्ल नादां अब मनाने लगी है ।

दिल में दिल का घरौंदा बनाके देख तो,
बारहा दिल को वो समझाने लगी है ।

“जैहिंद” इश्क़ में डूब के खुदा मिलेगा,
उसकी आशिकी मुझे बतलाने लगी है ।

==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
06. 06. 2017

212 Views
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