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31 Mar 2019 · 1 min read

ग़ज़ल “टूटे दिल को

क्यूँ अश्कों से भीगा तेरा चहरा लगता है
देखे न सुने न ज़माना ये बहरा लगता है।
??
वो चोटें जो एवज वफ़ा के खाई थीं मैंने
उनका घाव दिया आज तलक गहरा लगता है।
??
कैसे बीतेगी उम्र अब बिना तेरे साथी
अब तो सांसों पे भी मौत का पहरा लगता है।
??
मिल जाती थी अब्सारों में सूरत गुलशन की
अब तो तूफां सा अश्कों का ठहरा लगता है।
??
मोहब्बत में सहरा भी आए नजर खियाबां
सावन के अंधे को हर तरफ हरा लगता है।
??
हम ढूँढ रहे आज तलक ही वह सिर्फ नजारा
टूटे दिल को गुलशन भी इक सहरा लगता है।
??
इस दर्द भरी दुनिया में मिल सकते आप अगर
अब तो ये टूटा सा ख़्वाब सुनहरा लगता है।
??

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

297 Views
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