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10 Jan 2017 · 1 min read

ग़ज़ल- अब वक्त ही बचा नहीं…

ग़ज़ल- अब वक्त ही बचा नहीं…
मापनी- 221 2121 1221 212
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अब वक्त ही बचा नहीं’ भगवान के लिए
यूँ प्यार आ रहा किसी’ अनजान के लिए

तुमसे मिलन की’ आस में’ रस्ता भटक गया
आया नहीं था’ मैं यहाँ’ अपमान के लिए

वो चाहता था’ जीतना’ सारे जहान को
क्यूँ ले के’ जा रहे उसे’ शमशान के लिए

हमने ख़ुशी की’ चाह में’ क्या कुछ न खो दिया
पर वक्त ही रुका नहीं’ वरदान के लिए

परमाणु बम मिसाइलें’ बारूद आजकल
सब कुछ तो’ बन गये यहाँ’ इंसान के लिए

अनमोल है इसे नहीं’ “आकाश” बेचना
पैसा है’ जिंदगी किसी’ नादान के लिए

– आकाश महेशपुरी

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