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27 Jul 2020 · 1 min read

“गले लगाया ही कहाँ”

यकीनन गलत है कि उसने कुछ बताया नही।
जो कह रहा था वो तुम्हें सुनने आया ही कहाँ?

ढूँढ़-ढूँढकर निकाली थी उसमें खामियाँ तुमने।
एक एब भी कभी तुमनें खुद में पाया ही कहाँ?

माना कच्चा था ज़रा रस्मो-रिवाजों में वो कहीं।
होशियारों ने भी उससे रिश्ता निभाया ही कहाँ?

जिंदगी सांसो से जीते महज तो जिन्दा होता वो।
मौत ने भी उसे सलीके से गले लगाया ही कहाँ?
शशि “मंजुलाहृदय”

7 Likes · 8 Comments · 229 Views
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