Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jan 2017 · 5 min read

गलती का एहसास- कहानी

” रिश्ते-नाते तोड दीये”

मुकदमा एकसाल तक चला।
आखिरकार करुण और समता में तलाक हो गया। तलाक के कारण बहुत मामूली थे। पर मामूली बातों को बड़ी घटना में रिश्तेदारों ने बदल डाला।झगडा पति और पत्नी में हुआ,
हुआ युं कि आफिस में करुण का झगडा किसी से हो गया, जिसकी गुस्सा उसने समता के छोटे से मज़ाक पे थप्पड़ मार के उतारी, और भला बुरा बोला, और पत्नी ने इसके जवाब में अपना सैंडिल पति की तरफ़ उतार फेंका। सैंडिल का पति के सिर को छूता हुआ निकल गया।
मामला रफा-दफा हो जाता, लेकिन पति ने इसे अपनी बेज़्जइती समझा। रिश्तेदारों ने मामला और पेचीदा बना दिया, उलझा दिया रिस्ता बल्कि भयानक स्थिति कर दी!
सब रिश्तेदारों ने इसे खानदान की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि आदमी होकर तुम सहन केसे कर ग्ये, पति
को सैडिल मारने वाली औरत न घर में रहने लायक नहीं होती और न पतिव्रता होती है !
बुरी बातेंगंदगी की तरह बढ़ती हैं। सो, दोनों तरफ खूब आरोप उछाले गए। ऐसा लगा जैसे दोनों पक्षों के लोग आरोपों का खेल खेलने में खुश हैं ! मुकदमा दर्ज कराया गया।
करुण ने पत्नीसमता की चरित्रहीनता का तो समता ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया।
छह साल …….
वो छह साल, कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि केसे ये सब हुआ, शादीशुदा जीवन बीताने और एक बच्ची के होने के बाद आज दोनों में तलाक हो गया।
पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज थे, दोनों चुप, दोनों शांत। दोनों
निर्विकार एक दूसरे को देखते रहे, गलती का जरा सा एहसास जो हो रहा था!
झगडे के बाद से ही करुण और समता दोनों अलग रह रहे थे, क्युकिं नाम भले पति का करुण था, लेकिन आदमी के अहम को ठेस पहुची थी, तो सारी करुणा एक तरफ़, और समता नाम हो जाने से हमेशा समता का परीचय दें ये जरुरी तो नहीं, औरत के स्वाभिमान को ठेस पहुची थी ! तो रिश्तेदारो ने भी कोई कसर नहीं छोडी, जेसे उनके अहम और मान पर हाथ, सेन्डल चली हो !
लेकिन कुछ महीने पहले जब पति-पत्नी कोर्ट में दाखिल होते तो एक-दूसरे को देख कर मुँह फेर लेते। जैसे
जानबूझ कर एक-दूसरे की उपेक्षा कर रहे हों।दोनों एक दूसरे को देखते जैसेदो पत्थर आपस में रगड़ खा गए हों। दोनों गुस्से में होते। दोनों में बदले की भावना का आवेश होता। दोनों के साथ रिश्तेदार होते जिनकी हमदर्दियों में ज़रा-ज़रा विस्फोटक पदार्थ भी छुपा होता l इत्तेफाक था कि रिश्तेदार एक ही टी-स्टॉल पर बैठे। कोल्ड ड्रिंक्स लिया और हंस रहे थे, तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे, रिश्तेदारों को हसी अब चुभन लग रही थी, क्युकि अब गलती का एहसास था कि सब्र कर लेते थोडा, सबकी बातो में ना आते तो
शायद…

लकड़ी की बेंच और वो दोनों।
”कांग्रेच्यूलेशन!… आप जो चाहते थे वही हुआ।” समता ने कहा।
”तुम्हें भी बधाई। तुमने भी जीत हासिल की।” करुण बोला।
”तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है?” समता ने पूछा।
”तुम बताओ?”
करुण के पूछने पर समता ने जवाब नहीं दिया। वो चुपचाप बैठी रही। फिर बोली, ”तुमने मुझे चरित्रहीन कहा था। अच्छा हुआ। अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पिंड छूटा।”
”वो मेरी गलती थी। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।” करुण बोला।
”मैंने बहुत मानसिक तनाव झेला।” समता की आवाज़ सपाट थी। न दुःख, न गुस्सा।
”जानता हूँ। पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को
लहू-लुहान कर देता है… तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे बेहद अफ़सोस है, ” करून ने कहा।
कुछ पल चुप रहने के बाद करुण ने गहरी साँस ली। कहा, ”तुमने भी तो मुझे दहेज का लोभी कहा था।”
”गलत कहा था।” पति की ओऱ देखती हुई पत्नी बोली।
क्युकिं अब भी अलग होकर वो अलग नहीं हो पाये थे !
कुछ देर चुप रही समता फिर बोली, ”मैं कोई और आरोप क्या लगाती कुछ बुरा नहीं किया तुमने मेरा, अब आंखे नम थी दोनों की !
कप में चाय आ गई। समता ने चाय उठाई तो चाय ज़रा- सी छलक कर हाथ पर गिरी। स्सी… की आवाज़ निकली।
करुण के गले में उसी क्षण ‘ओह’ की आवाज़ निकली। करुण समता को देखे जा रहा था।
”तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?”
”ऐसा ही है। कभी डिकलो तो कभी काम्बीफ्लेम,” समता ने कहा और फीकी हँसी हँस दी।
”तुम्हारे अस्थमा की क्या कंडीशन है… फिर अटैक तो नहीं पड़े?” अब कोई स्त्री ने नहीं पत्नी ने प्यार से पूछा था।
”अस्थमा। डॉक्टर ने स्ट्रेस कम करने को कहा है, ” करुण बोला !
”तभी आज तुम्हारी साँस उखड़ी-उखड़ी-सी है,”
समता ने हमदर्द लहजे में कहा। ”इनहेलर तो लेते रहते हो न?”
हाँ, पर आज वज्ह और कुछ…” करुण कहते-कहते रुक गया।
”कुछ… कुछ तनाव के कारण,” समता ने बात पूरी की।उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।

दोनों का ध्यान अभी अपनी बेटी पर नहीं था क्युकिं वो टूटे रिश्ते को जोड़ने की एक आखिरी कोशिश में लगे थे !
करुण उसका चेहरा देखता रहा।
कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी उसकी पत्नी हुआ करती थी।
समता भी आंखो में आशू लिये करुण को देख रही थी और सोच रही थी, ”कितना सरल स्वभाव का है यह पुरुष, जो कभी उसका पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था उससे…
क्या हम फ़िर एक बार… काश, हम एक दूसरे को समझ पाते।” दोनों चुप थे। बेहद चुप। दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश। दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे…

झिझकते हुए समता ने पूछ ही लिया, क्या
”हम फिर से साथ-साथ रहने लगें… एक साथ… पति- पत्नी बन कर… बहुत अच्छे दोस्त बन कर।”
”ये पेपर?” करुण ने पूछा।
”फाड़ देते हैं।” एक साथ दोनों ने कहा औऱ अपने हाथ से दोनों ने तलाक के काग़ज़ात फाड़ दिए। एक दूसरे के हाथ में हाथ डाल कर मुस्कराए, माफ़ी मागी। दोनों पक्षों के रिश्तेदार हैरान-परेशान थे उन्हें अब अपनी हार नजर आ रही थी।
दोनों पति-पत्नी हाथ में हाथ डाले घर की तरफ चल दिये, और उन सभी रिश्तेदारों से सारे नाते तोड़ दिये!
घर जो पति-पत्नी का था, उसमे किसी तीसरे की अब जरुरत नहीं थी

लेखिका – जयति जैन
रानीपुर, झांसी उ.प्र.

Language: Hindi
1 Like · 1438 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
जीवन
जीवन
Rekha Drolia
दीनानाथ दिनेश जी से संपर्क
दीनानाथ दिनेश जी से संपर्क
Ravi Prakash
2588.पूर्णिका
2588.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
"चांद पे तिरंगा"
राकेश चौरसिया
सत्संग
सत्संग
पूर्वार्थ
धर्म ज्योतिष वास्तु अंतराष्ट्रीय सम्मेलन
धर्म ज्योतिष वास्तु अंतराष्ट्रीय सम्मेलन
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
‘पितृ देवो भव’ कि स्मृति में दो शब्द.............
‘पितृ देवो भव’ कि स्मृति में दो शब्द.............
Awadhesh Kumar Singh
लेती है मेरा इम्तिहान ,कैसे देखिए
लेती है मेरा इम्तिहान ,कैसे देखिए
Shweta Soni
प्रेस कांफ्रेंस
प्रेस कांफ्रेंस
Harish Chandra Pande
क्या आप उन्हीं में से एक हैं
क्या आप उन्हीं में से एक हैं
ruby kumari
आज खुश हे तु इतना, तेरी खुशियों में
आज खुश हे तु इतना, तेरी खुशियों में
Swami Ganganiya
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
Swara Kumari arya
*.....मै भी उड़ना चाहती.....*
*.....मै भी उड़ना चाहती.....*
Naushaba Suriya
"गुल्लक"
Dr. Kishan tandon kranti
❤️एक अबोध बालक ❤️
❤️एक अबोध बालक ❤️
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"झूठी है मुस्कान"
Pushpraj Anant
बौद्ध धर्म - एक विस्तृत विवेचना
बौद्ध धर्म - एक विस्तृत विवेचना
Shyam Sundar Subramanian
आप और हम
आप और हम
Neeraj Agarwal
सादगी तो हमारी जरा……देखिए
सादगी तो हमारी जरा……देखिए
shabina. Naaz
छल ......
छल ......
sushil sarna
ज़रूरत के तकाज़ो पर
ज़रूरत के तकाज़ो पर
Dr fauzia Naseem shad
मेरी तू  रूह  में  बसती  है
मेरी तू रूह में बसती है
डॉ. दीपक मेवाती
ईश्वर से बात
ईश्वर से बात
Rakesh Bahanwal
बेचारा जमीर ( रूह की मौत )
बेचारा जमीर ( रूह की मौत )
ओनिका सेतिया 'अनु '
कोई...💔
कोई...💔
Srishty Bansal
■ चार पंक्तियां अपनी मातृभूनि और उसके अलंकारों के सम्मान में
■ चार पंक्तियां अपनी मातृभूनि और उसके अलंकारों के सम्मान में
*Author प्रणय प्रभात*
मैं पढ़ने कैसे जाऊं
मैं पढ़ने कैसे जाऊं
Anjana banda
आरक्षण बनाम आरक्षण / MUSAFIR BAITHA
आरक्षण बनाम आरक्षण / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
दो अक्षर में कैसे बतला दूँ
दो अक्षर में कैसे बतला दूँ
Harminder Kaur
दिवाली का संकल्प
दिवाली का संकल्प
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...