गलतफहमियों से अच्छा रिश्ता टूट जाता है
ये जो गुस्से का गागर है ना ,झट से फूट जाता है।
वो मेरी बेजान बातों पर भी ,मुझसे रूठ जाता है।
ये हादसा अक़्सर मेरे साथ होता है,
कि गलतफहमियों से अच्छा रिश्ता टूट जाता है।
मैं सच कहूँ फिर भी उसे विश्वास नही होता।
उसे क्या पता सब कुछ बकवास नही होता।
सच्चाई से लबालब बातों में ,कैसे वो झूठ पाता है।
कि गलतफहमियों से अच्छा रिश्ता टूट जाता है।
पता नही कौन हैं जो उसके कान भर देते हैं।
गलतफहमियों के पुतलों में जान भर देते हैं।
आखिर वो है कौन ? जो सारी खुशी लूट जाता है।
कि गलतफहमियों से अच्छा रिश्ता टूट जाता है।
अब उसे थोड़ा – थोड़ा मुझपर भरोसा हो गया है।
मेरी चुगलियों पर वो चादर डालकर सो गया है।
अब वो मेरा खुदसे जुड़ाव की डोर अटूट पाता है।
कि गलतफहमियों से अच्छा रिश्ता टूट जाता है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय