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4 Feb 2020 · 1 min read

गरीब आदमी हूं

सुबह में उठकर काम हो जाता
शाम को थक कर घर पर आता
फिर भी मुस्कुराता हूं
गरीब आदमी हूं साहब
गिर कर संभल जाता हूं !!

महल का सपना देखता
अपनी मढ़ैया में
चैन से सोते होंगे
वे लोग रजैया में
ठंडी हवा चले तो
कांप मैं जाता हूं !!

औकात क्या है मेरी
सब दिखाते हैं
इसी के वास्ते
काम पर बुलाते हैं
रोजी रोटी खातिर चला जाता हूं !!

रोज कमाता हूं रोज खाता हूं
जिस दिन काम मिले ना बड़ा घबराता हूं
सबको खुश रखना ए खुदा
यहीं दुहराता हूं
गरीब आदमी हूं साहब
गिर कर संभल जाता हूं !!

सुनिल गोस्वामी

Language: Hindi
2 Likes · 208 Views
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