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1 Jun 2021 · 1 min read

गरीबी की चिंता (कविता )

गरीबी की चिंता
*********
नहीं नहीं यह देह प्रदर्शन,
गलती नहीं गोरियों की ।

करी गरीबी ने ही हालत,
खस्ता युवा छोरियों की ।

कोई चारा नहीं बचा है,
किससे मदद आज माँगें।

फटी जींस में दिखा रहीं हैं,
बेचारी अपनी जाँघें।

पूरा पूरा कुछ भी देखें,
विचलित कभी न होता मन।

पर ऐसे भग्नाशेषों से ,
शांत चित्त में हो कंपन ।

कुछ मनचले दूर दृष्टि से ,
नजर गड़ाए हैं इनपर ।

लक्ष्य असंभव पर मनसिज का,
चाप चढ़ाए हैं इन पर ।।

धर्म और ईमान इसी से,
मिले जा रहे गारत में, ।

भगवन इससे अधिक गरीबी,
और न देना भारत में ।

गुरू सक्सेना

Language: Hindi
1 Comment · 343 Views
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