गरमी से तपते भूतल पर
गरमी से तपते भू तल पर ,बादल की घटा सी है छिटकी।
कुछ सांस उन्हें भी आने लगी.जिनकी साँसे अटकी अटकी ।
खेतों में हरियाली छायी ,खग वृन्द सभी मदमस्त हुए।
बागों में मोर नाचते हैं ,कोयल भी नव-मधु तान छुए।
बाड़े में बछिया रम्भाई,मृग मस्त हो दौड़ लगाते हैं।
सब झूम रहे हैं खुशियों में ,गीत मधुर बस गाते हैं।
यह देखि छटा इस मौसम की ,मेरा मनुवा हर्षाता है।
सुनि टेरि हृदय की जन जन के, नभ भी बूँदें वर्षाता है।