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3 Dec 2016 · 1 min read

गया वो ऐसे मुड़के दुबारा न मिला

एक रचना…………………आपकी नजर

गया वो ऐसे कि मुड के दुबारा न मिला
डूबो के ऐसे गया फिर किनारा न मिला
******************************
क्या कहूं मै अब हालाते गुलिस्तां तुमको
मिले काँटे ही गुल इक भी बहारा न मिला
******************************
तलाशता रहा मै उनको हरेक महफ़िल में
मिले चेहरे बहुत ,चेहरा वो प्यारा न मिला
********************************
मुन्तजिर रहे मेरे चश्म भी कयामत तक
तकदीर से भी तब तलक इशारा न मिला
*******************************
कर दी तमन्ना भी इश्क़ ए मुकम्मल ऐसे
सुपुर्दे ख़ाक हुये निशां भी हमारा न मिला
*******************************
कपिल कुमार
03/12/2016

मुन्तजिर……इंतजार में
चश्म………..आँखे

208 Views
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