गणतंत्र चाहिए लोकतंत्र चाहिए
वतन तुझे गणतंत्र चाहिए लोकतंत्र चाहिए
मुझे खुली हवा और महकता चमन चाहिए ।।
आज़ाद हुआ था आज़ादी के लिए
अब मुझे मेरे अधिकार, ना कैद चाहिए ।।
अब ना रुकेगी हवा, ना तिरंगे की खुशबू
हर आवज़ में, फिर वही इंकलाब चाहिए ।।
ये नफ़रत कैसे फैली, मुझे जानकारी चाहिए
किसने फैलाई, उसमें भी सरफरोशी चाहिए ।।
ये वतन है मोहब्बत का ईमान का
यहाँ सियासत की नीयत भी साफ़ चाहिए ।।
वतन मेरा रियासत नही हुक्मरानों की
यहाँ हर किसी में सुल्तान और जनता का दिल चाहिए ।।
ए वतन तुझे कहाँ छुपाई, उड़ती इस धुंध को कैसे मिटाऊं
मुझे हर कौने में, हंसता खेलता हिन्दुस्तान चाहिए ।।