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15 Mar 2021 · 1 min read

गज़ल

गज़ल
2122….2122…..2122…..212

गर्दिशों में साथ मेरे, मेरा् साया भी नहीं!
दर्दे दिल सुनने सुनाने, कोई् आया भी नहीं!

जो सभी को हैं खिलाते, भूखे प्यासे मर रहे,
कौन जाने कब से प्यासे, कब से खाया भी नहीं!

कुछ रहीं मेरी तो् कुछ, तेरी रहीं मजबूरियाँ,
दिल मिला आंखे मिलीं, पर प्यार दिखलाया नहीं!

बैठकर वातानुकूलित घर में, खेती कर रहे,
अन्न का दाना भी इक, जिसने उगाया भी नहीं!

क्यों शजर ऐसे लगाए, उनसे् हासिल क्या हुआ,
बे सबब लंबे हुए, फल फूल छाया भी नहीं!

बेच डालो ट्रेन मोटर, औ’र हवाई यान सब,
रोजी रोटी के है्ं लाले, औ’र किराया भी नहीं!

प्रेम सागर में तो प्रेमी, पार होता ढूबकर,
डूबने से डर गया, वो पार पाया भी नहीं!

….. ✍ सत्य कुमार ‘प्रेमी’

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