गज़ल
मंदिरों में खोजते जो, आज भी भगवान को!
प्यार कर पाये न वो, भगवान के इंसान को!
जो हमारा पेट भरता औ बचाता है सदा!
अन्नदाता औ जवानों के रखो सम्मान को!
तू मुझे बदनाम कर, कोई गिला शिक़वा नहीं,
पर न सह पाऊंगा मै्ं, अब इस देश के अपमान को!
जो चढ़ाते भोग छप्पन,उनको् जो खाते नहीं,
दे न पाये इक निवाला, वो दुखी इंसान को!
हम सभी आपस में मिलकर, इस तरह यारो रहें,
हम गले सबको लगाएं, होली् औ रमजान को!
जो हमारे बीच डाले, फूट बटवारे की् गर,
हम न सह पायेंगे अब, ऐसे किसी शैतान को!
प्रेम से रह लो अगर, प्रेमी जमीं पर स्वर्ग है,
प्रेम से बस में करो, इंसान क्या भगवान को!
…..✍ सत्य कुमार प्रेमी