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14 Jul 2017 · 1 min read

गज़ल

हम ख्वाबों की कश्ती बिन जल ही डुबोते
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

न होता ये सावन का पावन महीना,
हां,हो जाता जीते जी मुश्किल जीना।
नहीं​ खिलता उपवन,न होता हर्षित मन
न होता आलिंगन नहीं होता समर्पण।
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

न खुशनुमा होता हरपल,न पूर्वा बहती अविरल,
न स्पर्श होता कोमल और न जलधारा निर्मल,
न नृत्य करता प्रेम में पगला मन मयूरा,
न गाती कोयल रहता मधुर संगीत अधूरा।
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

न होती आस्था, न श्रद्धा ही होती
न बजती बाँसुरी,न चाहते ही होती।
न प्रकृति खिलती न श्रृंगार करती ,
न प्रणय गीत होते और विरहा आह भरती।
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

न होता प्रेम प्यार न माझी गाता मल्हार,
न रिश्ते ही होते,न रखता कोई सरोकार।
न बूंदों की बौछार,न झरनों की होती फुहार,
न पूजा अर्चन होता,न मनते नित त्योहार।
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

न होती सजन अनबन, न मनमानापन
न रूठते पिया तुम,न होता मनावन।
न खिलते कहीं फूल, न चुभते प्रीति शूल,
न झरती अमराई, न मन लेता अंगड़ाई।
अगर तुम न होते,अगर तुम न होते….. ।

नीलम शर्मा

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