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26 May 2017 · 1 min read

गज़ल

आज का हासिल
मिसरा- तुम हकीकत नहीं हो हसरत हो।
काफ़िया-अ
रद़ीफ़-हो।
तुम जियारत हो मुहब्बत की सनम,
तुम्हीं मेरे इश्क की नफासत हो।

बागबां में तरो ताज़ा खुश्बू फूलों की
तुम उन्हीं फूलों की नज़ारत हो।

बावफा आंखों से क्यों अश्क बहे,
कहीं ऐसा न हो कि कयामत हो।

है जिगर मोड़ दूं रुख़ आंधी काम,
ग़र ख़ुदा की हमपे इनायत हो।

जल्द ही खत्म हो नफरत का सफ़र
लोगों की खत्म गर सियासत हो।

ग़र भूला दें सब आपस का बैर नीलम।
न मुगालत हो सिर्फ गुरबत हो।

नीलम शर्मा

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