गजल
आसमान छूने का ख्वाब सजाये बैठे हैं
भविष्य में सुंदर नज़ारे दिखाये बैठे हैं।
अपनी थोड़ी सी खुशी के खातिर लोग
कितने लोगों का वो दिल दुखाये बैठे हैं।
तुम्हें फुर्सत होगी तभी तो तुम देखोगे
मंदिर के द्वार लोग हाथ फैलाये बैठे हैं।
खुशियों का माहौल बना है चारो ओर
कुछ लोग अभी भी दुखियाये बैठे हैं।
चुनाव आ जाने पे विनती करे कर जोड़
सत्ता मिलते कुर्सी पे हक जमाये बैठे हैं।
अपने ही गुनाहों को हज़म करके लोग
बेगुनाह लोगों को सज़ा दिलाये बैठे हैं।
हौसला बुलंद है और इरादा है मजबूत
फिर भी लोग अपना हुनर छुपाये बैठे हैं।
✍ सुमन अग्रवाल “सागरिका”
आगरा