गजल
“ये दिल बेतलब हो गया”
था बहुत विषैला पर दम ना था जहर में,
क्योंकि चाहने वाले बहुत थे मेरे शहर में,
और तुझे क्या लगा एक तू ही है हसींन यहाँ,
अरे कइयों को ठुकरा रखा था इस प्रेम के सफर में…!
तू नही तो कोई ये बात थी ज़हन में,
एक अलग ही मजा था उस दर्द के सहन में,
बेशक तेरे बाद सफर में मजा नही रहा ये बात अलग है,
एक ज़िंदा लाश सोयी थी मेरे कफ़न में…!
जो थामा किसी और का हाँथ दामन मेरा खाली था,
तू आयेगा कभी लौट के ये वहम फर्जी और जाली था,
दर्द देते है कांटे पर तुझसे ज्यदा नही,
काँटों के साथ फूल भी उखड़े पड़े थे उस बाग़ का में माली था….!
जब हुआ तुझे अहसास मेरी मोहब्बत का,
तो तुझे फिर से मुझसे लव हो गया,
पर देर बहुत हो गई तुझे सफर से लौटने में,
क्योंकि ये दिल अब बेतलब हो गया….!???